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________________ • व्यक्तित्व एवं कृतित्व धर्मानुयायियों के जीवन में धार्मिक संस्कार जीवन्त हो, इसके लिए दो ही बातें अनिवार्य हैं-धर्म का समुचित ज्ञान और उसका आचरण । ज्ञान-शून्य आचरण में न तेजस्विता होती है, न स्थायित्व और आचरण हीन ज्ञान तो पंगु है। धर्म का बोध, धर्म क्रियाओं के पीछे रहे भाव, उद्देश्य और जीवन में उनके उपयोग/प्रयोग का ज्ञान, स्वाध्याय या अध्ययन से होता है। धर्म-ज्ञान के लिए स्वाध्याय अनिवार्य है और धर्म के आचरण से समता, शान्ति की अनुभूति के लिए सामायिक-सबसे मुख्य साधना है। आचार्य श्री ने भगवान महावीर के ज्ञान-क्रिया के अमर सिद्धान्त को युग की भाषा और युगीन सन्दर्भो में स्वाध्यायसामायिक का स्वरूप दिया है । स्वाध्याय-ज्ञान की आराधना है तो सामायिक चारित्र की साधना है । आचार्य श्री ने स्वाध्याय-सामायिक को जैनत्व का पर्याय बना दिया, हजारों लोगों को केवल प्रेरणा ही नहीं दी, किन्तु इस अभियान में जोड़कर-एक ऐसा प्रबुद्ध स्वाध्यायी समताव्रती वर्ग खड़ा कर दिया है जो कहीं . भी जाकर जैनत्व को प्रतिष्ठित कर सकता है। आज हजारों स्वाध्यायी और नियमित सामायिक करने वाले, वृद्ध, प्रौढ़, युवक, किशोर और बालक तैयार हुए हैं, जिनको देखकर यह विश्वास होने लगा है कि एक बहुत बड़े अभाव की पूर्ति हो रही है। नदी के बहते प्रवाह की भांति धर्म के ये संस्कार नई पीढ़ी में भी प्रवाहित होते रहेंगे और धर्म अपना साकार रूप ग्रहण करता रहेगा । मैं तो यह पूर्ण आस्था के साथ कहता हूँ-आचार्य श्री ने सामायिक-स्वाध्याय का अभियान चलाकर हजारों वर्ष तक जैन संस्कारों को जीवित रखने का एक महनीय कार्य किया है। सामायिक-स्वाध्याय आज जैन की पहचान बनती जा रही है और आने वाले समय में यही जैन धर्म को जीवित रखेंगे। जब-जब हम सामायिक-स्वाध्याय पर चर्चा करेंगे, होनहार पीढ़ी को स्वाध्यायी और सामायिक व्रती के रूप में देखेंगे, श्रद्धेय आचार्य श्री के अविस्मरणीय योगदान का स्मरण होता रहेगा। -ए-७, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, अजन्ता सिनेमा के सामने, आगरा-२८२००२ जिस प्रकार धागे में पिरोई हुई सुई गिर जाने पर भी गुम नहीं होती है, उसी प्रकार ज्ञान-रूप धागे से युक्त आत्मा संसार में कहीं भटकती नहीं, अर्थात् विनाश को प्राप्त नहीं होती। -भगवान महावीर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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