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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
• २५५
(६)
गुरुदेव तुम्हारे चरणों में जीवन धन आज समर्पित है, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में ।।टेर।। यद्यपि मैं बंधन तोड़ रहा, पर मन की गति नहीं पकड़ रहा।
तुम ही लगाम थामे रखना, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में ।।१।। मन-मन्दिर में तुम को बैठा, मैं जड़ बंधन को तोड़ रहा ।
. शिव मंदिर में पहुंचा देना, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में ।।२।। मैं बालक हूँ नादान अभी, एक तेरा भरोसा भारी है।
अब चरण-शरण में ही रखना, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में ।।३।। अंतिम बस एक विनय मेरी, मानोगे आशा है पूरी।
काया छायावत् साथ रहे, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में ।।४।।
(१०)
गुरु-भक्ति
(तर्ज-साता बरतेजी) घणो सुख पावेला, जो गुरु बचनों पर प्रीति बढ़ावेला ॥घणो।।टेर।। विनयशील की कैसी महिमा, मूल सूत्र बतलावेला। वचन प्रमाण करे सो जन, सुख-सम्पत्ति पावेला ॥घणो।।१।। गुरु सेवा जोर आज्ञाधारी, सिद्धा खूब गिलावेला। जल पाये तरुवर सम वे, जग में सरसावेला ॥धणो।।२।। वचन प्रमाणे जो नर चाले, चिन्ता दूर भगावेला।
आप मति प्रारति भोगे नित, धोखा खावेला ॥घणो।।३।। एकलव्य लखि चकित पांडसुत, मन में सोच करावेला। कहा गुरु से हाल भील भी, भक्ति बतावेला ॥घणो।।४।। देश भक्ति उस भील युवा की, बनदेवी खुश होवेला। बिना अंगूठे बाण चले यों, वर दे जावेला ॥घणो।।५।।
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