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• व्यक्तित्व एवं कृतित्व
था । अजमेर दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर प्राचार्य श्री का मन नहीं था पर श्रावकों की इच्छा थी इसलिये वहां दीक्षा स्वर्ण जयन्ती महोत्सव मनाया गया । वे महापुरुष स्वयं की इच्छा नहीं होते हुए भी किसी का मन भी नहीं तोड़ते थे । उन्होंने त्याग-प्रत्याख्यान की बात रख कर श्रावक समाज के सामने त्याग-तप की रूपरेखा रख दी । उनके पुण्य प्रताप से बारह व्रतधारी कई श्रावक बने और व्यसनों का उस समय त्याग काफी लोगों ने किया।
__- प्राचार्य भगवन्त के गुण-कीर्तन प्रति मास किये जाते हैं फिर भी गुणों का अंत नहीं आता । उनके ज्ञान-दर्शन-चारित्र और संयम साधना के साथ उनके साहित्य एवं व्यक्तित्व और कृतित्व पर आज के कई विद्वान् खोज करते हैं।
हमारे यहां तीन प्रकार के प्राचार्य कहे गये हैं । एक कलाचार्य, एक शिल्पाचार्य और एक धर्माचार्य । प्राचार्य भगवन् कलाचारी, शिल्पाचारी
और धर्माचारी थे। व्यक्ति को प्राकर्षित करने की उनकी अदभत कला थी। उनके संसर्ग में जो पाता उसे आगे बढ़ाते । धीरे-धीरे कैसे उस व्यक्ति को ऊंचाइयों तक पहुँचा देते, इस बात को आप जानते हैं । उनके पास जो कोई आया, लेकर ही गया । कहना चाहिये-वे चुम्बक थे, आकर्षित करने की उनकी कला अपने आप में अनूठी थी। आचार्य भगवन्त पारस थे-लोहे को सोना बनाना जानते थे । इधर-उधर भटकने वाले, दुर्व्यसनों के शिकारी और साधारण से साधारण जिस किसी ने उस महापुरुष के दर्शन किए, उसके जीवन में सद्गुण आए ही।
गुरुदेव ने चातुर्मास के लिये मुझे दिल्ली भेजा । मैं नाम लेकर चला गया । दिल्ली में कई ऐसे श्रावक थे जिन्होंने आचार्य श्री हस्तीमलजी म० के दर्शन नहीं किये । प्राचार्य भगवंत का तीस वर्ष पहले दिल्ली में चातुर्मास हा था परन्तु पूराने-पुराने श्रावक तो चले गये, बच्चे जवान हो गये। दिल्ली-वासियों ने जब संतों का जीवन देखा तो उनके मन में आया-इनके गुरु कैसे होंगे ? दिल्ली के श्रावक प्राचार्य भगवंत के दर्शनार्थ आये । पाकर कहने लगे-'महाराज! हमने तो भगवन् देख लिये ।' गुरुदेव हर व्यक्ति के जीवन को ऊंचा उठाने वाले कलाचारी थे।
____उस महापुरुष ने एक शिल्पाचारी के रूप में कइयों का जीवन निर्माण किया । मेरी दीक्षा के बाद बड़ी दीक्षा महामंदिर हुई । गुरुदेव मूथाजी के मंदिर पधारे और कहा-मेरे को अप्रमत्त भाव में रहकर बतलाना ।
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