SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. • २२१ उक्त पक्तियों द्वारा मातृ शक्ति की महिमा का गुणगान ही नहीं किया बल्कि भविष्य में आशा की किरण भी उन्हें माना है। उनका कहना था-सती मदालसा की भांति 'शुद्धोसि, बुद्धोसि, निरंजनोसि' की लोरी सुनाकर माता सत्कार्य की ऐसी प्रेरणा दे सकती है जो १०० अध्यापक मिलकर जीवन भर नहीं दे सकते। वास्तव में पुरुष और स्त्री गहरूपी शकट के दो चक्र हैं। उनमें से एक की भी खराबी पारिवारिक जीवन रूपी यात्रा में बाधक सिद्ध होती है। योग्य स्त्री सारे घर को सुधार सकती है, वह नास्तिक पुरुष के मन में भी आस्तिकता का संचार कर सकती है। महासती सुभद्रा ने अपने अन्यमति पति को ही नहीं पूरे परिवार को धर्म में प्रतिष्ठित कर दिया। धर्म के प्रति उसकी निष्ठा ने कच्चे धागों से बंधी चलनी से भी कुए से पानी खींच कर दिखा दिया । व्यवहार में यह कथा अनहोनी लगती है लेकिन आत्मिक शक्तियों के सामने प्राकृतिक शक्तियों को नतमस्तक होना पड़ता है। दर्शन की कसौटी पर खरे रहें-प्राचार्य श्री फरमाया करते थे कि हमारी साधना का लक्ष्य है आठ कर्मों को और उनकी बेड़ियों को काटकर आत्मा को शुद्ध, बुद्ध, निरंजन-निराकार, निर्लेप एवं अनन्त आनन्द की अधिकारी बनाना परन्तु यह लक्ष्य तब तक प्राप्त नहीं हो सकता जब तक कि हमारी साधना क्रम पूर्वक न चले । दर्शन की नींव पर ही धर्म का महल खड़ा रहता है। दर्शन के बिना तो ज्ञान भी सम्यक नहीं कहला सकता अतएव पहले सच्ची श्रद्धा एवं निष्ठा हो । एक ओर बहनें संत-सतियों के मुँह से अनेक बार सुनती हैं कि प्रत्येक प्राणी को अपने कर्मानुसार ही सुख-दुःख मिलते हैं, जब तक जीव की आयु पूरी नहीं होती तब तक कोई मारने वाला नहीं और दूसरी तरफ भैरू, भोपे के यहाँ जाना, दोनों में विरोधाभास लगता है। अच्छे-अच्छे धर्म के धुरन्धर कहलाने वाले भाई-बहन जहाँ पशु-पक्षियों की बलि होती है, पंचेन्द्रिय जीवों की हत्या होती है, वहाँ जाकर मस्तक झुकाने एवं चढ़ावा चढ़ाने वाले मिल जायेंगे। वे दृढ़ता से फरमाते थे कि अगर नवकार मंत्र पर पूरे विश्वास से पंच परमेष्ठी की शरण में रहें तो न किसी देव की ताकत है न किसी देवी की ताकत और न किसी मानव अथवा दानव की ही ताकत है कि उनमें से कोई भी किसी प्राणी के पुण्य और पाप के विपरीत किसी तरह से उनके सुखदुःख में उसके भोगने व त्यागने में दखलनंदाजी कर सके। वह तो परीक्षा की घड़ी होती है अतएव बहनें कठिन परिस्थितियों में भी धर्म के प्रति सच्ची निष्ठावान बनी रहें तथा सच्चे देव-गुरु एवं धर्म की आराधक बनें। यही धर्म का सार अथवा उसका मूल है-"दसणमूलो धम्मो।" ज्ञान-पथ की पथिक बनो-आचार्य श्री बहनों के भौतिक और Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy