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________________ RORD आचार्य श्री एवं नारी-जागरण - श्रीमती सुशीला बोहरा आचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. विशुद्ध श्रमणाचार के प्रतीक, धर्म जगत् के प्रबल प्रहरी, युग प्रवर्तक संत एवं इस युग की महान् विभूति थे । ७० वर्ष की सुदीर्घावधि तक उत्कट अध्यात्म-साधना में लीन एवं प्रात्म-चिंतन में निरन्तर निरत रहकर आपने जहाँ अनेक प्राध्यात्मिक उपलब्धियों को प्राप्त किया, वहीं आपके उपदेशों से अनुप्राणित हो अनेक कल्याणकारी संगठनों की सुदृढ़ नींव पड़ी है । आप जहाँ एक परम्परावादी महान् संतों की श्रृंखला में शीर्षस्थ थे वहीं प्रगतिशील एवं सुधारवादी संतों में उच्चकोटि के विचारक रहे । आपने ज्ञानाराधक के रूप में सम्यक्ज्ञान प्रचारक मंडल, सामायिक संघ, स्वाध्याय संघ, जैन सिद्धान्त शिक्षण संस्थान, जैन इतिहास समिति आदि संस्थाओं को खोलने की प्रेरणा दी वहीं समाज सुधारक के रूप में स्वधर्मी वात्सल्य समिति एवं अखिल भारतीय महावीर जैन श्राविका समिति जैसी संस्थाओं का मार्गदर्शन कर तथा स्वाध्यायी बन पर्युषण में सेवा देने की प्रेरणा देकर महिलाओं को घर की चार दीवारी से निकलकर कार्य करने की प्रेरणा दी तथा सदियों से जीवन-निर्माण क्षेत्र में पिछड़ी हुई मातृ शक्ति को कार्य क्षेत्र में उतरने का आह्वान किया। वे यदाकदा फरमाते रहते थे कि साधना के मार्ग में स्त्री-पुरुष में कोई विभेद नहीं है । स्त्रियों की संख्या धर्म-क्षेत्र में सदैव पुरुषों से अधिक रही है। सभी कालों में साधुओं की अपेक्षा साध्वियाँ, श्रावकों की अपेक्षा श्राविकाएँ अधिक रही हैं। यहाँ तक कि तीर्थंकर पद तक को उन्होंने प्राप्त किया है, अतएव महिलायें तो धर्म की रक्षक रही हैं । इन्हीं माताओं की गोद में महान् पुरुषों का लालन-पालन होता है और उनके कंठ से मधुर ध्वनि फूट पड़ी "ऋषभदेव और महावीर से, नर वर जाये हैं । राम कृष्ण तेरे ही सुत हैं, महिमा छाई हो । जन-जन वंदन सब ही तुम पर, पाश धरावे हो । युग-युग से तुम ही माता बन, पूजा पाई हो ।।" Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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