SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • प्राचार्य श्री हस्तीमलज म. सा. • २०७ पर पर बहुत बड़ा संघ खड़ा किया। उनके उपकार को संसार कभी नहीं भूलेगा। उन्होंने देश में घूम-घूम कर यही अलख जगायी (सामायिक-स्वाध्याय महान्) । जन-जन के कानों में इस मत्र को फूंका। जिसने इस मंत्र को हृदयंगम किया है, उसका बेड़ा पार हुआ है। उन्होंने देश में इन स्वाध्याय संघों की एक शक्ति खड़ी करदी है जो आज इस मंच को चमका रही है। प्राचार्य हस्ती एक हस्ती ही नहीं एक महान् गंध हस्ती थे। उनकी वाक्गंध से लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे। उन्होंने जैन जगत के सामने एक आदर्श उपस्थित किया। आचार्य पद पर इतने लम्बे काल तक रहकर सिंह के समान हुंकार करते हुए प्राचार्य पद को सुशोभित किया । उन्होंने इस मूलमंत्र को सिद्ध कर दिया कि सामायिक स्वाध्याय के मुकाबले कोई दूसरा मंत्र नहीं है जो किसी को तिरा सके। सामायिक अपने आप में समत्व भाव की विशुद्ध साधना है। सामायिक में साधक की चितवृत्ति क्षीर समुद्र की तरह एकदम शांत रहती है, इसलिये वह नवीन कर्मों का बंध नहीं करती। आत्म स्वरूप में स्थिर रहने के कारण जो कर्म शेष रहे हुए हैं उनकी वह निर्जरा कर लेता है। प्राचार्य हरिभद्र ने लिखा है कि सामायिक की विशुद्ध साधना से जीव घाती कर्म नष्ट कर केवलज्ञान प्राप्त कर लेता है। सामायिक का साधक द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की विशुद्धि के साथ मन, वचन, काया की शुद्धि से सामायिक ग्रहण करता है। छः आवश्यकों में सामायिक पहला आवश्यक है। सामायिक के बिना षडावश्यक करना संभव नहीं है। और जो सामायिक होती है वह षडावश्यकपूर्वक ही होती है। सामायिक में षडावश्यक समाये हुए हैं। चाहे वे आगे-पीछे क्यों न हों। सामायिक व्रतों में नवां व्रत है। जब आठों की साधना होती है तो नवां व्रत सामायिक आता है, क्योंकि सामायिक में आठों व्रत समाये हुए हैं। जब साधक साधना मार्ग ग्रहण करता है तो पहले सामायिक चारित्र ग्रहण करता है क्योंकि चारित्रों में पहला चारित्र सामायिक है। शिक्षाव्रतों में पहला शिक्षाव्रत सामायिक है। पापकारी प्रवृत्तियों का त्याग करना सावध योग का त्याग है। इसी मूल पर सामायिक की साधना की जाती है। सामायिक का अर्थ है समता व सम का अर्थ है श्रेष्ठ और अयन का अर्थ आचरण करना है यानी आचरणों में श्रेष्ठ आचरण सामायिक है। विषमभावों से हटकर स्वस्वभाव में रमरण करना समता है। समत्व को 'गीता' में योग कहा है। इसी कारण सामायिक की साधना सबसे उत्कृष्ट साधना है। अन्य जितनी भी साधनाएँ हैं, सब उसमें अन्तनिहित हो जाती हैं । प्राचार्य जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने सामायिक को चौदह पूर्व का अर्थ पिण्ड कहा है । आत्म स्पर्शता ही समता है । Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy