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________________ • श्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. का त्याग एवं स्वदार में संतोष रूप ब्रह्मचर्य का पालन, (vi) रात्रि भोजन का त्याग, (vii) १४ नियम एवं तीन मनोरथ का चितवन एवं विभाग द्वारा प्रायोजित साधना शिविर में भाग लेना तथा प्रतिदिन स्वाध्याय करना सम्मिलित है । • १८५ साधक श्रेणियाँ एवं साधना - साधकों की तीन श्रेणियाँ हैं— साधक, विशिष्ट साधक एवं परम साधक । सभी श्रेणियों में साधना संघ के उद्देश्यों के अनुरूप स्वाध्याय, साधना एवं समाज सेवा के लिए नियम निर्धारित किये गये हैं । वर्तमान में ५६ साधक इस संघ के सदस्य हैं। इनमें (दस) साधक, बारह व्रती व शेष सभी अणुव्रतधारी हैं। सभी व्यसन त्यागी, प्रामाणिक जीवन जीने वाले तथा दहेजादि कुप्रथाओं के त्यागी हैं । साधक घर पर रहते हुए प्रतिदिन नियमित स्वाध्याय, ध्यान, मौन, तप एवं कषाय विजय की साधना करते हैं । पौषघ व्रतादि की आराधना करते हुए समाज-सेवा के कार्यों में भी अपना समय देते हैं । साधक संघ के संचालन का कार्य वर्तमान में लेखक के पास है । प्रति दो माह तीन माह में साधकों से पत्र-व्यवहार द्वारा उनकी साधना विषयक गतिविधि की जानकारी प्राप्त की जाती है । शिविर प्रायोजन - वर्ष में एक या दो साधक शिविर प्रायोजित किये जाते हैं | इसमें उक्त साधना तथा ध्यान-साधना का अभ्यास कराया जाता है । पंच दिवसीय शिविर में दयाव्रत में रहते हुए साधक एकांत स्थान पर स्वाध्याय ध्यान, तप, मौन, कषाय-विजय आदि की साधना करते हैं । ध्यान पद्धति की सैद्धांतिक जानकारी भी दी जाती है । कुछ विशेष साधनाओं पर शिविरायोजन होते हैं । अभी तक समभाव साधक, इन्द्रिय विजय साधक, मनोविजय और कषाय विजय पर विशेष शिविर आयोजित किये जा चुके हैं जो पर्याप्त सफल रहे हैं । धर्म-प्रचार यात्राएँ - विगत वर्षों में साधकों एवं स्वाध्यायियों ने महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश एवं राजस्थान राज्यों में धर्मप्रचार यात्राएँ सम्पन्न कर ग्राम-ग्राम एवं नगर - नगर में प्रार्थना सभाओं, धार्मिक पाठशालाओं, स्वाध्याय एवं साधना के प्रति जन-जन में रुचि जागृत की है । सप्त कुव्यसन, दहेजादि कुप्रथाओं तथा अन्य-अन्य प्रकार के प्रत्याख्यान करवाकर लोगों में अहिंसादि के संस्कार दृढ़ बनाये हैं । प्राचार्य प्रवर की साधना विषयक श्रवधारणा - पू० श्राचार्यश्री की दृष्टि में साधना का आध्यात्मिक स्वरूप ही साधना विषयक अवधारणा का मूल रहा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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