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________________ प्राचार्य श्री की देन : साधना के क्षेत्र में - श्री चांदमल कर्णावट पू० प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा० की साहित्य, धर्म, दर्शन, इतिहास, साधना, स्वाध्याय, व्यसनमुक्ति एवं समाज-संगठन आदि क्षेत्रों में महनीय देन रही है । इसे जैन समाज व सामान्य जनसमुदाय कभी नहीं भुला सकेगा । जनजन के मनमानस पर प्राचार्यश्री की उत्कृष्ट साधुता एवं आदर्श संयमी जीवन की एक अमिट छाप सदा बनी रहेगी। जैन धर्म के मौलिक इतिहास' के मार्गदर्शक आचार्य श्री हस्ती स्वयं अपना इतिहास गढ़ गये हैं, जो सदा सर्वदा आदरणीय, स्मरणीय एवं उल्लेखनीय रहेगा। आचार्यश्री उच्चकोटि के योगी थे और थे साधना के आदर्श । ज्ञान, दर्शन, चारित्र की साधना तो उनका जीवन थी। उनके जीवन और मरण में साधना जैसे रम गई थी। वे साधनामय बन गये थे। कितना अप्रमत्त था उनका जीवन । ध्यान, मौन, जप, तप, स्वाध्याय आदि की साधना में डबे रहते थे वे। निष्कषायता एवं निर्मलता की छाप थी उनके जीवन-व्यवहारों में । अत्यल्प सात्विक आहार और अत्यल्प निद्रा, शेष सम्पूर्ण समय संयम-साधना में, भगवान महावीर के महान् सिद्धान्तों के प्रचार-प्रसार में विशेषतः साहित्य-सृजन में वे लगाया करते थे। प्रत्येक दर्शनार्थी को स्वाध्याय एवं धर्मसाधना की पूछताछ एवं प्रेरणा देने के बाद चन्द मिनटों में ही अपनी साधना में संलग्न हो जाते। संयम, सादगी, सरलता और अप्रमत्तता का उदाहरण था आचार्य प्रवर का जीवन । साधना क्षेत्र में एक महान क्रांतिकारी रचनात्मक कदम उठाया आचार्य श्री हस्ती ने । साधना की उनकी अपनी अवधारणा थी। साधना प्रवृत्ति की उनकी मौलिक विशेषताएँ थीं । साधना क्यों की जाय ? उसका क्या स्वरूप हो? ज्ञान, दर्शन, चारित्र की साधना कैसी हो? इन सभी के बारे में उनके अपने विचार थे, जिन्हें इस निबन्ध में क्रमश: विस्तार से बताया जा रहा है। एक क्रांतिकारी सृजन-प्राचार्य श्री हस्ती एक दूरदर्शी सन्त थे। उन्होंने भावी समाज की कल्पना करके स्वाध्याय प्रवृत्ति का व्यापक प्रसार तो किया ही, उससे भी आगे बढ़कर उन्होंने साधक संघ के गठन की भी महती प्रेरणा दी। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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