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हैं, देखें हैं । प्राचार्य भगवन्त की साहित्य - साधना पर जितनी - जितनी खोज की जायगी, उतनी - उतनी मात्रा में आध्यात्मिक नवनीत मिलेगा ।
व्यक्तित्व एवं कृतित्व
आचार्य भगवन्त की साधना-आराधना के अलौकिक तथ्य आपके समक्ष रखूं या उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर कहूँ ? उनके गुणों का बखान करना असम्भव है । क्या कभी विराट् सागर को अंजलि में भरा जा सकता है ? विशाल पृथ्वी क्या बाल-चरण से नापी जानी सम्भव है ? क्या तारे गिने जा सकते हैं ? गुरु भगवन्त के अनेकानेक गुणों का कीर्तन एक साथ सम्भव हो ही नहीं सकता ।
दस वर्ष की लघुवय में संसार का, परिवार का और इन्द्रिय जनित सुखों का पथ छोड़कर आचार्यश्री ने साधना मार्ग में एक से बढ़कर एक ऐसे कीर्तिमान स्थापित किये, जिनसे आप, हम सब परिचित हैं । अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य की उनकी साधना के कुछ रूप प्रापके समक्ष रखने की भावना है ।
हिंसा को मन-वचन-कर्म से आत्मसात करने वाले आचार्य देव ने प्राणिमात्र के प्रति ऐसी समता - एकरूपता कायम की कि प्रशान्त और क्रोध में प्राये हुए सर्प को भी उन्होंने जीवनदान दिया । तीर्थङ्कर भगवान महावीर स्वामी भूले हुए नागराज को साधना का भान कराने स्वयं उसकी बांबी पर पहुँचे, उपसर्ग सहन किया और उसके बाद उसे प्रतिबुद्ध किया । आचार्य भगवन्त के जीवन में सहज संयोग प्राप्त होता है सतारा नगरी में । स्थंडिल की आवश्यकता पूर्ति के लिए भगवन् पधार रहे थे । रास्ते में जातिगत द्व ेषी लोगों द्वारा सांप को मारा जा रहा था । भगवन् ने कहा- 'भाई ! क्यों मार रहे हो ?' उत्तर आया'ऐसी दया है तो ले जा ।' बस फिर क्या था ? भगवन् ने क्रोधित साँप को वाणी के माध्यम से 'ये तुझे मार रहे हैं, मैं बचाना चाहता हूँ, मगर इष्ट हो तो प्रा जा', साँप रजोहरण पर आ गया । भगवन् ने उसे जंगल में छोड़ दिया ।
ऐसी ही घटना बैराठ में हुई । नाग के उपद्रव से परेशान भाई ने घर के सामान को बाहर निकाल कर झोंपड़ी में आग लगा दी । जलती झोंपड़ी में से आचार्य भगवन्त ने साँप को "मैं तुझे बचाना चाहता हूँ" वाणी के माध्यम से कहा - साँप रजोहरण पर उपस्थित हो गया ।
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आचार्य भगवन् बीजापुर से विहार कर बागलकोट पधार रहे थे । कोरनी ग्राम में नदी के बाहर सहज बनी एक साल में विराजमान थे वहाँ देखागाँव के रूढ़िवादी लोग बाजे-गाजे के साथ बकरे को बलि देने के लिए ला रहे
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। गाँव में रूढ़िवादी लोगों की मान्यता थी कि नदी पर बकरे की बलि से गाँव में शान्ति रहेगी । इस मनगढ़न्त मान्यता के कारण बकरा बलि को चढ़ाया
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