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महान् उपकारी प्राचार्य देव !"
आचार्य श्री हीराचन्द्रजी म. सा.
सिद्धिको लक्ष्य बनाकर साधना मार्ग में चरण बढ़ाने वाले आदर्श साधक प्राचार्य भगवन्त के साधनामय जीवन को लेकर विद्वानजन अपना-अपना चिन्तन प्रस्तुत कर रहे हैं। अहिंसा, सत्य, शील, ध्यान, मौन, संयम-साधना आदि गुणों को अनेकानेक रूप में रखा जा रहा है । विद्वत् संगोष्ठी के माध्यम से आपके समक्ष कई विद्वानों ने चिन्तन-मनन, अध्ययन - अनुसंधान कर अपने-अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये हैं ।
आचार्य भगवन्त की वाणी में प्रोज, हृदय में पवित्रता तथा साधना में उत्कर्ष था । उनका बाह्य व्यक्तित्व जितना नयनाभिराम था उससे भी कई गुना अधिक उनका जीवन मनोभिराम था । गुरुदेव की भव्य प्राकृति में देह भले ही छोटी रही हो पर उनका दीप्तिमान निर्मल श्याम वर्ण, प्रशस्त भाल, उन्नत सिर, तेजपूर्ण शान्त मुख-मुद्रा, प्रेम-पीयूष बरसाते दिव्य नेत्र, 'दया पालो' का इशारा करते कर-कमल । इस प्रभावी व्यक्तित्व से हर आगत मुग्ध हुए बिना नहीं रहता था ।
उनके जीवन में सागर सी गम्भीरता, चन्द्र सी शीतलता, सूर्य सी तेजस्विता और पर्वत सी अडोलता का सामंजस्य था । उनकी वाणी की मधुरता, विचारों की महानता और व्यवहार की सरलता छिपाये नहीं छिपती थी । उनकी विशिष्ट संयम साधना अद्वितीय थी ।
विद्वद्जनों ने प्राचार्य भगवन्त की साहित्य सेवा के सन्दर्भ में अपना चिन्तन प्रस्तुत किया । वस्तुत: आचार्य भगवन्त की साहित्य सेवा अनूठी थी । कविता की गंगा, कथा की यमुना और शास्त्र के सूत्रों की सरस्वती का उनके साहित्य में अद्भुत संगम था । प्राचार्य भगवन् की कृतियों में वाल्मीकि का सौन्दर्य, कालिदास की प्रेषरणीयता, भवभूति की करुणा, तुलसीदास का प्रवाह, सूरदास की मधुरता, दिनकर की वीरता, गुप्तजी की सरलता का संगम था । शास्त्रों की टीकाएँ, जैन धर्म का मौलिक इतिहास, प्रवचन -संग्रह तथा शिक्षाप्रद कथाओं से लेकर आत्म जागृति हेतु भजन - स्तवन के अनेकानेक प्रसंग आपने सुने * जोधपुर में प्रायोजित विद्वत संगोष्ठी में १७-१०-११ को दिये गये प्रवचन से श्री नौरतन मेहता द्वारा संकलित - सम्पादित अंश ।
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