SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६८ ६. ७. ८. • व्यक्तित्व एवं कृतित्व मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण करो । आगार धर्म को स्वीकार कर अणगार धर्म की तरफ बढ़ने का प्रयास करो । बंध का कारण राग और बंध- मोचन का कारण विराग है । पृ० १४१ पर आचार्य प्रवर फरमाते हैं - साधना तप प्रधान है । तपस्या चिन्तन के लिये स्वाध्याय आवश्यक है । तप राग घटाने की क्रिया है । तप के साथ विवेक आवश्यक है । आध्यात्मिक साधना में दृढ़ संकल्पी होना, मत्सर भावना का त्याग करना और सम्यकदृष्टि रखना साधक के लिये परम आवश्यक है । - ५२८ /७, नेहरू नगर, इन्दौर नश्वर काया थारी फूल सी देह पलक में, पलटे क्या मगरूरी राखे रे । आतम ज्ञान अमीरस तजने जहर जड़ी किम चाखे रे ॥ १ ॥ काल बली थांरे लारे पड़ियो, ज्यों पीसे त्यों फाके रे । जरा मंजारी छल कर बैठी, ज्यों मूसा पर ताके रे ।। २ ।। सिर पर पाग लगा खुशबोई, तेवड़ा छोगा नाखे रे । निरखे नार पार की नेणे, वचन विषय किस भाखे रे ।। ३॥ Jain Educationa International इन्द्र धनुष ज्यों पलक में पलटे, देह खेह सम दाखे रे । इण सूं मोह करे सोई मूरख, इम कहे श्रागम साखे रे ।। ४ ।। 'रतनचन्द' जग इवे वर्था, फांदिए कर्म विपाके रे । शिव सुख ज्ञान दियो मोय सतगुरु, तिण सुख री अभिलाखे रे ।। ५ ।। For Personal and Private Use Only - श्राचार्य श्री रतनचन्दजी म. सा. www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy