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७.
८.
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व्यक्तित्व एवं कृतित्व
मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण करो ।
आगार धर्म को स्वीकार कर अणगार धर्म की तरफ बढ़ने का प्रयास करो ।
बंध का कारण राग और बंध- मोचन का कारण विराग है ।
पृ० १४१ पर आचार्य प्रवर फरमाते हैं - साधना तप प्रधान है । तपस्या चिन्तन के लिये स्वाध्याय आवश्यक है । तप राग घटाने की क्रिया है । तप के साथ विवेक आवश्यक है । आध्यात्मिक साधना में दृढ़ संकल्पी होना, मत्सर भावना का त्याग करना और सम्यकदृष्टि रखना साधक के लिये परम आवश्यक है ।
- ५२८ /७, नेहरू नगर, इन्दौर
नश्वर काया
थारी फूल सी देह पलक में, पलटे क्या मगरूरी राखे रे । आतम ज्ञान अमीरस तजने जहर जड़ी किम चाखे रे ॥ १ ॥
काल बली थांरे लारे पड़ियो, ज्यों पीसे त्यों फाके रे । जरा मंजारी छल कर बैठी, ज्यों मूसा पर ताके रे ।। २ ।।
सिर पर पाग लगा खुशबोई, तेवड़ा छोगा नाखे रे । निरखे नार पार की नेणे, वचन विषय किस भाखे रे ।। ३॥
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इन्द्र धनुष ज्यों पलक में पलटे, देह खेह सम दाखे रे । इण सूं मोह करे सोई मूरख, इम कहे श्रागम साखे रे ।। ४ ।।
'रतनचन्द' जग इवे वर्था, फांदिए कर्म विपाके रे । शिव सुख ज्ञान दियो मोय सतगुरु, तिण सुख री अभिलाखे रे ।। ५ ।।
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- श्राचार्य श्री रतनचन्दजी म. सा.
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