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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
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२. कामना पर विजय ही दुःख पर विजय है। ३. शांति और क्षमा ये दोनों चारित्र के चरण हैं । ४. पोथी में ज्ञान है लेकिन आचरण में नहीं है तो वह ज्ञान हमारा
सम्बल नहीं बन पाता। ५. जिसके मन में पर्दा है वहाँ सच्चा प्रेम नहीं है । ६. शास्त्र ही मनुष्य का वास्तविक नयन है।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि आचार्य श्री के प्रवचनों में कहीं प्रात्मा और परमात्मा के साक्षात्कार की दिव्य आनन्दानुभूति का उल्लास है तो कहीं समाज की विसंगतियों और विकृतियों पर किए जाने वाले प्रहार की ललकार है । उनमें जीवन और समाज को मोड़ देने की प्रबल प्रेरणा और अदम्य शक्ति है।
-सहायक प्रोफेसर, पत्रकारिता विभाग, राजस्थान वि. वि., जयपुर
सन्तन के दरबार में
भाई मत खेले तू माया रंग गुलाल सूं ।। टेर । भाई हो रही होली, सन्त बसन्त की बहार में । महाव्रत-पंचरंग फूल महक ले, भवि मधुकर गुंजार में ।। भाई. ।। ज्ञान-गुलाल-लाल रंग उछरे, अनुभव अमलाकांतार में । क्रिया-केसर रंग भर पिचकारी, खेले सुमति प्रिया संग प्यार में ॥ भाई.॥ जप तप-डफ-मृदंग-चंग बाजे, जिन-गुण गावे राग धमार में । 'सुजाण' या विधि-होली मची है, सन्तन के दरबार में ॥ भाई. ।।
-मुनि श्री सुजानमलजी म. सा.
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