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(६) धर्म मार्ग की सीख पण्डित को देने से अनुयायी स्वतः परिवर्तित होते हैं । (म० व्या० मा० ६/२७८) ।
व्यक्तित्व एवं कृतित्व
नवपद आराधन के पुनीत पर्व के उपलक्ष में, अन्याय पर न्याय की विजय के विजयादशमी पर्व के उपलक्ष में, भक्ति और शक्ति के संयोग की घड़ी में आचार्य श्री की दार्शनिक मान्यताओं की नवविध किरणें हमारे अनन्तकालीन मोहांधकार को विनष्ट कर आत्म-प्रकाश उजागर करें, इसी श्रद्धांजलि के साथ पूज्य आचार्य प्रवर के चरण कमलों में कोटिशः वन्दन ।
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१. विज्ञान अधूरा, जिनवाणी पूर्ण है-वैज्ञानिक की शोध नियंत्रित परिस्थिति में परिस्थितियों को नियंत्रित करने के लिये की जाती है । उनका परीक्षण अनुमान तथा बाह्य उपकरणों पर आधारित होता है । विज्ञान के निष्कर्ष सार्वभौमिक और सार्वकालिक नहीं होते । वैज्ञानिक 'पर' के माध्यम सें 'पर' की खोज करता है और 'पर' के सुख की व्यवस्था कर अपनी इति स्वीकारता है, उसे आत्मिक ज्ञान की अपेक्षा नहीं होती । वैज्ञानिक शोध के माध्यम से भौतिक सत्य और तथ्य को प्रस्तुत करने का प्रयास करता है किन्तु उसकी शोध का परिणाम उपभोक्ता के राग और द्वेष का जामा धारण कर भौतिक उपयोग की वस्तु या भौतिक विनाश का साधन बन जाता है । इसीलिये विज्ञान अधूरा है । वीतराग पदार्थों के सत्य और तथ्य को प्रस्तुत करते हैं किन्तु राग और द्व ेष को जीत लेने वाले वीतराग की वाणी में भौतिकता से शून्य आत्म-लाभ के अतिरिक्त सर्वस्व अनुपादेय है । वीतराग ने अपने अनुभव की प्रयोगशाला में शोधित निष्कर्षों को स्याद्वाद के तर्क पुरस्सर वाणी से प्रस्तुत किया । सापेक्ष सत्य और सापेक्ष तथ्य ही वीतरागियों की वाणी की पूर्णता है ।
विज्ञान ने एक ओर सर्दी, गर्मी आदि के प्रकोप से होने वाले प्रतिकूल वेदनीय दुःख से निजात दिलाई, दूरी कम करदी, आवागमन आदि के साधन सुलभ करा दिये, औद्योगीकरण, शहरीकरण, भौतिक साम्राज्यीकरण ने जो वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण आदि समस्याएँ दीं, वे मानवमात्र ही नहीं प्राणीमात्र के जीवन को खतरे में डाले हुए हैं । परिस्थिति नियंत्रण का यह प्रतिफल हम भोग रहे हैं ।
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जिनवाणी ने मनःस्थिति नियंत्रण का शंखनाद फूंका जिससे लोभ और मोह पर विजय कर स्वयं वीतराग पद पाया जा सकता है ।
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२. प्रार्थना श्रात्म शुद्धि की पद्धति है - आत्मोपलब्धि की तीव्र अभिलाषा वाले मुमुक्षु, वीतराग को प्रार्थ्य मानकर 'अरिहन्तो मह देवो' के माध्यम से
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