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________________ • xii · आचार्य श्री की साहित्य साधना का गौरव शिखर है 'जैन धर्म का मौलिक इतिहास भाग १ से ४ । यह शुष्क इतिहास न होकर भारतीय विविध साधना पद्धतियों, धार्मिक श्राम्दोलनों और सांस्कृतिक मूल्यों का सरस दस्तावेज है । आचार्य श्री का करुरण कोमल हृदय कविता के रूप में फूट पड़ा है । उनकी कविता उच्च आध्यात्मिक अनुभूतियों का साक्षात्कार है । इंद्रिय-आधारित सुख-दुःख से ऊपर उठकर वे अतीन्द्रिय आनंद की अनुभूति में गा उठते हैं'मैं हूँ उस नगरी का भूप, जहाँ न होती छाया धूप । ' 1 व्यक्तित्व एवं कृतित्व आचार्य श्री हस्ती पार्थिव रूप से आज हमारे बीच नहीं हैं पर उनका यशः शरीर अमर है । उनका सन्देश हमारा पाथेय बने, उनकी प्रेरणा हमारी स्फुरणा बने । इसी भावना से उनकी प्रथम पुण्य तिथि पर 'आचार्य श्री हस्ती व्यक्तित्व एवं कृतित्व' प्रकाशन श्रद्धांजलि रूप में उन्हें समर्पित है | यह प्रकाशन तीन खण्डों में विभक्त है । प्रथम खण्ड 'व्यक्तित्व-वन्दन' प्राचार्य श्री के संयमशील बहुमुखी व्यक्तित्व पर व द्वितीय खण्ड ' कृतित्वमूल्यांकन' में उनके कृतित्व (साहित्य, इतिहास, साधना, धर्म, दर्शन, संस्कृति, दैनिक जीवन आदि क्षेत्रों में उनकी देन) पर विशेष सामग्री संकलित की गई है। श्री अखिल भारतीय जैन विद्वत् परिषद्, अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ, सम्यग्ज्ञान प्रचारक मंडल एवं श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ, जोधपुर के संयुक्त तत्त्वावधान में प्राचार्य श्री हीराचन्द्र जी म० सा० एवं उपाध्याय श्री मानचन्द्र जी म० सा० के सान्निध्य में १६, १७ व १८ अक्टूबर, १६६१ को 'आचार्य श्री हस्तीमल जी म० सा० के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर जोधपुर में अखिल भारतीय विद्वत् संगोष्ठी का आयोजन किया गया था। इस संगोष्ठी में विद्वानों ने जो निबन्ध प्रस्तुत किये थे, यथासंभव उनका समावेश इस ग्रंथ में किया गया है । जो विषय- बिन्दु छूट गये थे, उन पर विद्वानों से नई रचनाएँ मंगवाकर उन्हें प्रकाशित किया गया है । विद्वान् लेखको के सहयोग के लिए आभार । तृतीय खण्ड 'प्राचार्य श्री के प्रेरक पद एवं प्रवचन' से सम्बन्धित है । यह खण्ड इस प्रकाशन का महत्त्वपूर्ण खण्ड है । इसमें प्राचार्य श्री के ३८ पद व १२ प्रवचन संकलित किये गये हैं जो बड़े मार्मिक, आत्म जागृति बोधक, प्रेरणादायक एवं मार्गदर्शक हैं । Jain Educationa International आचार्य श्री का जीवन और साहित्य, उनका व्यक्तित्व और कृतित्व अनन्त और अमाप है । लंगड़े विचार मन की क्या बिसात कि वह उस सिद्ध पुरुष के आध्यात्मिक गौरव - शिखर को छू सके ? For Personal and Private Use Only -नरेन्द्र भानावत www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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