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________________ • ६८ • व्यक्तित्व एवं कृतित्व तथा दूसरा संस्करण सन् १९७५ ई० में प्रकाशित हुआ । दोनों संस्करणों का प्रकाशन सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर से हुआ । प्रथम संस्करण में प्राकृत मूल एवं हिन्दी अर्थ दिया गया था तथा अन्त में एक परिशिष्ट था जिसमें विशिष्ट शब्दों का सरल हिन्दी अर्थ दिया गया था। द्वितीय संस्करण अधिक श्रम एवं विशेषताओं के साथ प्रकाशित हुआ। इस संस्करण में कॉलम पद्धति अपना कर पहले प्राकृत मूल फिर उसकी संस्कृत छाया तथा उसके सामने के पृष्ठ पर शब्दानुलक्षी हिन्दी अर्थ (छाया) तथा अंतिम कॉलम में हिन्दी भावार्थ दिया गया है । इन चारों को एक साथ एक ही पृष्ठ पर पाकर नितान्त मंद बुद्धि प्राणी को भी आगम-ज्ञान प्राप्त हो सकता है तथा तीक्ष्ण बुद्धि प्राणी एक-एक शब्द के गूढ़ अर्थ को समझ सकता है। 'अंतगड' की पाठ-शुद्धि एवं अर्थ के निरूपण हेतु उपाध्याय श्री प्यारचन्दजी महाराज द्वारा अनूदित पत्राकार प्रति, सैलाना से प्रकाशित पुस्तक, प्राचीन हस्तलिखित प्रति, आगमोदय समिति, सूरत से प्रकाशित सटीक 'अन्तकृद्दशा सूत्र' और 'भगवती सूत्र' के खंधक प्रकरण का विशेष अवलम्बन लिया गया है । अभयदेव सूरि कृत संस्कृत टीका, प्राचीन टब्बा एवं पं० घासीलालजी महाराज कृत संस्कृत-टीकाओं को भी दृष्टि में रखा गया है। द्वितीय संस्करण विशेषतः पर्युषण में वाचन की सुविधा हेतु निर्मित है, जो सूत्र के अर्थ को शीघ्र ही हृदयंगम कराने की अद्भुत क्षमता रखता है। शुद्ध मूल के साथ शब्दानुलक्षी अर्थ की जिज्ञासा रखने वाले पाठकों के लिए यह अत्यन्त उपादेय है । संस्कृत का यत्किचित ज्ञान रखने वाला पाठक भी मूल आगम का हार्द सहज रूप सेसमझ सकता है। _ 'अंतगडदसा सूत्र' का ऐसा कॉलम पद्धति वाला सुस्पष्ट अनुवाद एवं भावार्थ अन्य आचार्यों द्वारा कृत हिन्दी अनुवाद से निश्चित रूप से विशिष्ट है । अन्त में प्रमुख शब्दों का विवेचनयुक्त परिशिष्ट भी इस ग्रंथ की शोभा है। उत्तराध्ययन एवं दशवकालिक सूत्र : आगम-ग्रथों में सर्वाधिक पठन-पाठन 'उत्तराध्ययन' एवं 'दशवैकालिक' सूत्रों का होता है । आचार्य प्रवर ने इनका हिन्दी में पद्यानुवाद करा कर इन्हें सरस, सुबोध एवं गेय बना दिया है । अधुनायावत् आगम-ग्रथों का हिन्दी पद्यानुवाद नहीं हुआ था किन्तु आचार्य प्रवर की सत्प्रेरणा एवं सम्यक् Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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