SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. 'प्रश्न व्याकरण सूत्र' का यह संस्करण दो खण्डों में विभक्त है । प्रथम खण्ड में पांच आस्रवों का वर्णन है तो द्वितीय खण्ड में अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह रूप पांच संवरों का निरूपण है । परिशिष्ट में शब्दकोश, विशिष्ट स्थलों के टिप्पण, पाठान्तर-सूची और कथा भाग दिया गया है । यह सूत्र-ग्रन्थ प्राचार्य प्रवर के विद्वत्तापूर्ण १७ पृष्ठों के प्राक्कथन से अलंकृत है। पाठान्तरों या पाठ-भेदों की समस्या 'प्रश्न व्याकरण' में 'नन्दी सूत्र' से भी अधिक है । इसका अनुभव स्वयं प्राचार्य श्री ने किया था। उन्होंने पाठ-भेद की समस्या पर प्राक्कथन में उल्लेख करते हुए लिखा है-"आगम मन्दिर (पालीताणा) जैसी प्रामाणिक प्रति जो शिला-पट्ट और ताम्र-पत्र पर अंकित हो चुकी है, वह भी अशुद्धि से दूषित देखी गई है ।" अतः आचार्य प्रवर ने पाठ-संशोधन हेतु अनेक प्रतियों का तुलनात्मक उपयोग किया था, जिनमें प्रमुख थीं-अभयदेव सूरि कृत टीका, हस्तलिखित टब्बा, ज्ञान विमल सूरि कृत टीका एवं आगम मन्दिर पालीतारणा से प्रकाशित मूल पाठ । संशोधित-पाठ देने के बाद प्राचार्य प्रवर ने पाठान्तर सूची भी दी है जिसमें अन्य प्रतियों में उपलब्ध पाठ-भेद का उल्लेख किया है। ___ 'प्रश्न व्याकरण' के जो पाठ-भेद अधिक विचारणीय थे, ऐसे १७ पाठों की एक तालिका बनाकर समाधान हेतु विशिष्ट विद्वानों या संस्थाओं को भेजी गई जिनमें प्रमुख हैं-१. व्यवस्थापक, आगम मन्दिर पालीतारणा २. पुण्य विजयजी, जैसलमेर ३. भैरोंदानजी सेठिया, बीकानेर ४. जिनागम प्रकाशन समिति, ब्यावर एवं ५. उपाध्याय श्री अमर मुनिजी, ब्यावर । तालिका की एक प्रति 'सम्यग्दर्शन' में प्रकाशनार्थ सैलाना भेजी गई, किन्तु इनमें से तीन की ओर से पहुँच के अतिरिक्त कोई उत्तर नहीं मिला। 'सम्यग्दर्शन' पत्रिका के प्रथम वर्ष के ग्यारहवें अंक में यह तालिका प्रकाशित हुई, किन्तु किसी की ओर से कोई टिप्पणी नहीं आई। इस प्रकार साधन-हीन एवं सहयोग रहित अवस्था में भी प्राचार्य प्रवर ने अथक श्रम एवं निष्ठा के साथ श्रुत सेवा की भावना से 'प्रश्न-व्याकरण' सूत्र का विशिष्ट संशोधित संस्करण प्रस्तुत कर आगम-जिज्ञासुओं का मार्ग प्रशस्त किया। सिरि अंतगडदसाम्रो: आचार्य प्रवर कृत संस्कृत-हिन्दी अनुवाद युक्त 'सिरि अंतगडदसानो' के दो संस्करण निकल चुके हैं । प्रथम संस्करण सन् १९६५ ई० में निकला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy