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कार्मरण शरीर और कर्म ]
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सृष्टि ही नहीं हो सकती । प्रत्येक परमाणु 'कर्म' नहीं बन सकते । सूक्ष्म एवं चतुः स्पर्शी परमाणु ही 'कर्म' बन सकते हैं । इन चतुःस्पर्शी परमाणु-स्कन्धों में भार नहीं होता, वे लघु व गुरु नहीं होते । उनमें विद्युत् आवेग नहीं होता । वे बाहर जा सकते हैं यानी दीवार के बीच में भी निकल सकते हैं । उनकी गति अप्रत्याहत और अस्खलित होती है । अन्य चार स्पर्श लघु-गुरु ( हल्का - भारी ) और कर्कश-मृदु (कठोर - मीठा ) ये वस्तु के मूलभूत धर्म नहीं हैं परन्तु वे संयोग शक्ति के द्वारा बनते हैं । इन प्रष्टस्पर्शी परमाणु स्कन्धों में भार होता है, विद्युत्, आवेग व प्रस्फुटन होता है और उनका स्थूल अवगाहन भी होता है । इन अष्टस्पर्शी पुद्गलों में कर्म बनने की और अमूर्त आत्मा की शक्तियों को आवृत्त करने की क्षमता नहीं होती ।
थियोसोफिस्ट्स (Theosophists) ने इन शरीरों की भिन्न संज्ञाएँ दी हैं । उन्होंने स्थूल शरीर को Physical Body, सूक्ष्म शरीर को Etheric Body और अति सूक्ष्म शरीर को Astral Body कहा है । वेदान्त के महर्षि अरविन्द ने बताया है कि स्थूल शरीर के अतिरिक्त हमारे अनेक सूक्ष्म शरीर भी हैं और हम निरे स्थूल शरीर ही नहीं, अपितु अनेक शरीरों के निर्माता भी हैं तथा उन्हें इच्छानुसार प्रभावित करने की शक्ति रखने वाले समर्थ आत्म- पुरुष भी हैं । उन्होंने आगे बताया कि इस शरीर के अतिरिक्त हमारे चार अदृश्य शरीर उन चार लोकों जो वायव्य लोक, दिव्य लोक, मानसिक लोक तथा आध्यात्मिक लोक के नाम से जाने जाते हैं, से सान्निध्य प्राप्त करते हैं । हमारा प्राणमय शरीर आकार-प्रकार में स्थूल शरीर जैसा ही होता है पर स्थूल शरीर के रहते यह जितना प्रभावशाली था, इससे अलग होने पर उससे हजार गुना अधिक शक्तिशाली और प्रभावशाली हो जाता है ।
कर्म-शरीर सर्वाधिक शक्तिशाली शरीर है । यह अन्य सभी शरीरों का मूलभूत हेतु है । इसके होने पर अन्य शरीर होते हैं और न होने पर कोई शरीर नहीं होता । स्थूल शरीर का सीधा सम्पर्क तैजस शरीर से है और तैजस शरीर का सीधा सम्पर्क कर्म - शरीर से है । कर्म - शरीर से सीधा सम्पर्क चेतना का है र यह कर्म-शरीर ही चैतन्य पर आवरण डालता है । कर्म-शरीर स्थूल शरीर द्वारा आकर्षित बाह्य जगत् के प्रभावों को ग्रहण करता है और चैतन्य के प्रभावों को बाह्य जगत् तक पहुँचाता है । सुख-दुःख का अनुभव कर्म-युक्त शरीर से होता है । घटना स्थूल शरीर में घटित होती है और उसका संवेदन कर्मशरीर में होता है । मादक वस्तुओं का प्रयोग करने पर स्थूल शरीर और कर्मशरीर का सम्बन्ध ऊपरी स्तर पर विच्छिन्न हो जाता है । इससे उस दशा में स्थूल शरीर का सर्दी, गर्मी या पीड़ा का कोई संवेदन नहीं होता । रोग भी कर्म - शरीर में उत्पन्न होता है और स्थूल शरीर में व्यक्त होता है । वासना कर्म - शरीर में उत्पन्न होती है और व्यक्त होती है स्थूल शरीर द्वारा । कर्म-शरीर और स्थूल
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