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कार्मण शरीर और कर्म
0 श्री चन्दनराज मेहता
__ कर्म-जगत का सम्बन्ध स्थूल शरीर से नहीं होकर उस सूक्ष्म शरीर से है जो इस दृश्य शरीर के भीतर है। शरीर पाँच प्रकार के हैं-औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस व कार्मण । इनमें तैजस और कार्मण शरीर अतीव सूक्ष्म हैं। आत्मा जब तक पूर्णतया कर्मों से मुक्त नहीं होती तब तक ये दोनों सूक्ष्म शरीर सदा आत्मा के साथ रहते हैं । आत्मा के कोई कर्म पुद्गल नहीं चिपकते परन्तु आत्मा के साथ जो कर्म शरीर है उससे चिपकते हैं। तैजस शरीर-कर्म शरीर और स्थूल शरीर के बीच सेतु का काम करता है । जो शरीर आहार आदि को पचाने में समर्थ है और जो तेजोमय है वह तैजस शरीर है। यह शरीर विद्युत् परमाणुओं व कर्म शरीर, वासना, संस्कार व संवेदन के सूक्ष्मतम परमाणुओं से निर्मित होता है।
___ कार्मण शरीर अतीव सूक्ष्म है और ज्ञानावरणीय आदि पाठ कर्मों के पुद्गल समूह से इसका निर्माण होता है। यह शरीर अत्यन्त सूक्ष्म है इसलिए सारे लोक की कोई भी वस्तु उनके प्रवेश को नहीं रोक सकती। सूक्ष्म वस्तु बिना रुकावट के सर्वत्र प्रवेश कर सकती है जैसे अति कठोर लोह पिण्ड में अग्नि ।
कर्म शरीर के अतीव सूक्ष्म पुद्गल यानी अनन्त प्रदेशी स्कन्ध जो सिद्धों से अनन्त गुणा ज्यादा और अभवी से अनन्त भाग कम हैं, हमारी आत्मा से चिपके हुए हैं । शरीर विज्ञान के अनुसार हमारे भौतिक शरीर में एक वर्ग इंच स्थान में ग्यारह लाख से अधिक कोशिकाएँ होती हैं किन्तु यदि सूक्ष्म कर्म-शरीर में स्थित कर्म जगत् की कोशिकाओं का लेखा जोखा किया जाय तो मालूम होगा कि एक वर्ग इंच जगह में अरबों-खरबों कोशिकाओं का अस्तित्व है। ये कर्म पुद्गल चार स्पर्श वाले एवं अनन्त प्रदेशी होते हैं। इन सूक्ष्म पुद्गलों का स्वरूप इतना सूक्ष्म होता है कि वे केवल अतीद्रिय शक्तियों के द्वारा ही देखे जा सकते हैं, एवं मात्र बाह्य उपकरणों से नहीं देखे जा सकते ।
शीत-उष्ण और स्निग्ध-रुक्ष ये चार मूल स्पर्श हैं और प्रत्येक पुद्गल में प्राप्त हैं। ये विरोधी हैं पर उनका सह-अवस्थान है। वे चारों हैं तभी पुद्गल स्कन्ध हमारे लिए उपयोगी होता है। दुनिया में सब कुछ युगल है, जिसके बिना
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