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________________ ७४ ] [ कर्म सिद्धान्त (ग) यथोधेनुसहस्रषु, वत्सो विन्दतिमातरम् । __ तथैवेह कृतं कर्म, कर्तार मनुगच्छति ॥ --चाणक्यनीति १२।१५ ११-कम्मं चिणंति सवसा, तस्सुदयाम्मि उपरव्वसा होति । रूक्खं दुरूहइ सवसो, विगलइ स परव्वसो तत्तो ।। -समणसुत्तं, ज्योतिर्मुख, वही, श्लोकांक ६०, पृष्ठांक २०-२१ १२-कमयित्तं फलं पुंसां, बुद्धिः कर्मानुसारिणी । -चाणक्यनीति १३।१० १३-कम्मवसा खलु जीवा, जीववसाइं कहिंचि कम्माइं। . कत्थइ धणियो बलवं, धारणिो कत्थई बलवं ।। -समणसुत्तं, ज्योतिर्मुख, वही, श्लोकांक ६१, पृष्ठांक २०-२१ १४- (क) कम्मत्तणेण एक्कं, दव्वं भावोत्ति होदि दुविहं तु । पोग्गल पिंडो दव्वं, तस्सत्ती भावकम्मं तु ।। -समणसुत्तं, ज्योतिर्मुख, वही, श्लोकांक ६२, पृष्ठांक २०-२१ (ख) अर्हत्प्रवचन, सम्पादक-चैनसुखदास न्यायतीर्थ, प्रात्मोदय ग्रंथमाला जयपुर, सितम्बर १९६२, श्लोकांक ७, पृष्ठांक १८ १५- (क) जो इंदियादि विजई, भवीय उवयोग मप्पंग आदि । कम्मेहिं सो ण रंजदि, किह तं पाणा अणुचरंति ॥ -समणसुत्तं, ज्योतिर्मुख, वही, श्लोकांक ६३, पृष्ठांक २०-२१ (ख) कम्मबीएसु दडढेसु, न जायंति भवंकुरा। -दशाश्रुत स्कंध ५।१५ (ग) अकम्मस्स ववहारो न विज्जई । -प्राचारांग ३१ १६--(क) नाणसावरणिज्जं दंसणावरणं तहा।। वेयरिणज्जं तहा मोहं, आउकम्मं तहेव य ॥ नाम कम्मं च गोयं च, अंतरायं तहेव य । एवमेयाई कम्माई, अट्ठेब उ समासप्रो । -समरणसुत्तं, ज्योतिर्मुख, वही, श्लोकांक ६४-६५ पृष्ठांक २२-२३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003842
Book TitleJinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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