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[ कर्म सिद्धान्त सूर्यमित्र मुनि द्वारा इस वृत्तान्त को सुनकर जया सेठानी ने संतोष धारण किया एवं पूरे परिवार ने गृहस्थों के व्रत धारण किये ।'
[३] जादुई बगीचा
0 डॉ० प्रेम सुमन जैन जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में धनधान्य से युक्त कुसट्ट नामक देश है। उसमें बलासक नामक गाँव है, जहाँ सब कुछ है, किन्तु दूर-दूर तक पेड़ों की छाया नहीं है। ऐसे इस गाँव में विद्वान् अग्निशर्मा ब्राह्मण रहता था। उसके अग्निशिखा नामक शीलवती पत्नी थी। उन दोनों के अत्यन्त सुन्दर विद्युत्प्रभा नामक पुत्री थी। तीनों का समय सुख से व्यतीत होता था।
अचानक जब विद्युत्प्रभा पाठ वर्ष की हुई तब भयंकर रोग से पीड़ित होकर उसकी मां का निधन हो गया। इससे घर का सारा कार्य विद्युत्प्रभा पर आ पड़ा। एक दिन सुबह से शाम तक वह कार्य करते-करते जब ऊब गयी तो उसने अपने पिता से सौतेली मां ले आने को कहा, जिससे उसे कुछ राहत मिल सके। किन्तु दुर्भाग्य से सौतेली मां ऐसी आयी कि वह घर का कुछ भी काम नहीं करती थी। इससे विद्युत्प्रभा का दुःख और बढ़ गया। उसे काम तो पूरा करना पड़ता, किन्तु भोजन बहुत कम मिलता। इसे वह अपने कर्मों का फल मानकर दिन व्यतीत करने लगी।
___ एक दिन विद्यत्प्रभा गायों को चराने के लिए जंगल में गयी थी। थककर वह दोपहर में वहाँ पर सो गयी। तब एक बड़ा साँप उसके पास आया। वह मनुष्य की भाषा में विद्युत्प्रभा से बोला कि मुझे तुम ओढ़नी से ढककर अपनी गोद में छिपा लो, कुछ सपेरे मेरे पीछे पड़े हुए हैं, उनसे मुझे बचा लो। विद्युत्प्रभा ने बड़े साहस से करुणापूर्वक उस नाग की रक्षा की। इससे संतुष्ट होकर नाग अपने असली रूप में आकर देवता बन गया। उसने विद्युत्प्रभा से एक वर मांगने को कहा । विद्युत्प्रभा ने लालच के बिना केवल इतना वर मांगा कि मेरी गायों को और मुझे धूप न लगे इसलिए मेरे ऊपर तुम कोई छाया कर दो । उस नागकुमार देवता ने तुरन्त विद्युत्प्रभा के सिर पर एक सुन्दर बगीचा बना दिया और कहा-'यह बगीचा तुम्हारी इच्छा से छोटा-बड़ा होकर हमेशा
१. १२वीं शताब्दी की अपभ्रंश कथा 'सुकुमालचरिउं' (श्रीधर कृत) का संक्षिप्त
रूपान्तर।
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