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[ कर्म सिद्धान्त
पर चलकर ही मिल सकता है । तीथंकरों ने भी साधारण मानव की भांति जन्म लिया और अपनी साधना और सम्यक् चिंतन और आचरण द्वारा महामानव -भगवान बन गए।
विज्ञान तो आजकल महानाश-प्रलय का अग्रदूत बन गया है । विकसित कुछ बड़े देशों ने ऐसे अस्त्रशस्त्रों का निर्माण कर लिया है और करते जा रहे हैं जिनसे संसार या पृथ्वी टुकड़े-टुकड़े होकर समाप्त की जा सकती हैं । सर्वज्ञ तीर्थंकरों का कर्म-सिद्धान्त इसके ठीक विपरीत देश और संसार में तथा किसी भी समाज में सुख-शान्ति की स्थायी स्थापना कर सकता है।
जैन कर्म सिद्धान्त की कुछ प्रमुख विशेषताएँ हैं जिनमें मुख्य है आत्मा और पुद्गल के सम्बन्ध की विशद, विधिवत, पूर्ण वैज्ञानिक व्याख्या। सभी जीवधारियों के साथ अनादिकालीन रूप से आत्मा के साथ पुद्गल (मटर) निर्मित शरीर है। शरीर हलन-चलन कार्य या कर्म का माध्यम है और आत्मा चेतना, ज्ञान और अनुभूति का माध्यम । बिना आत्मा के सभी पुद्गल शरीर निष्क्रिय और बेजान जड़ हैं। किसी शरीर में जब तक आत्मा विद्यमान रहती है वह शरीर कर्म करता है, ठीक उसी प्रकार जैसे बिजली की हर प्रकार की मशीनें। बिजली की मशीन या तंत्र तरह-तरह के विभिन्न बनावटोंवाले होते हैं पर बिना बिजली के कुछ भी काम नहीं कर सकते। उसी प्रकार सभी आदमियों और जीवधारियों के शरीरों का निर्माण-बनावट भिन्न-भिन्न होती है पर वे सभी अपने शरीरों में आत्मा रहने पर ही काम करते हैं। आत्मा के नहीं रहने पर वे मुर्दा-निष्क्रिय होते हैं। आत्मा सभी में समान है पर बनावट विभिन्न होने से उनके कार्य अलग-अलग होते हैं जैसे बिजली के यन्त्रों के ।
___ जैन कर्म सिद्धान्त के अनुसार किसी जीवधारी के स्थूल शरीर के अतिरिक्त “कार्मण शरीर" और "तेजस" शरीर भी होता है। इन दोनों को हम नहीं देख सकते। इनके निर्माण करने वाले पुद्गल परमाणु और उनके संघ इतने सूक्ष्म होते हैं कि देखना संभव नहीं होता। इनमें कार्मण शरीर सबमें प्रमुख है। यही मानव या किसी भी जीवधारी के कार्यकलापों का प्रेरक नियंता या कर्ताधर्ता है। हमारा शरीर अनेकानेक रासायनिक द्रव्यों के सम्मेलन से बना हुआ है। ये रासायनिक पदार्थ, सभी के सभी, पुद्गल निर्मित होते हैं। ऊपर कहा जा चुका है कि आधुनिक विज्ञान के इलेक्ट्रन, प्रोटन, न्यूट्रन, पोजीट्रन आदि जैन सिद्धान्त में वर्णित "पुद्गल" हैं । चूँकि "एटम" को हिन्दी में परमाणु की संज्ञा दी गई है-इसलिए इलेक्ट्रन आदि को मैंने "परम परमाणु" कहा है। ये ही परम परमाणु “पुद्गल" हैं। पुद्गल परम परमाणु ही आपस में मिल-मिलाकर परमाणु (एटम) बनाते हैं और ये एटम (पुद्गल परमाणु) मिलकर अणु (मौलीक्यूल) बनाते हैं। जिनके मिलने से-संघबद्ध होने से,
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