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________________ २१८ ] [ कर्म सिद्धान्त मानव क्रिया का स्वरूप : .. मानव क्रिया के स्वरूप पर प्रकाश डालने के लिए हम इस प्रश्न पर विचार करें कि हमारी क्रियाएँ प्रकृति में होने वाले विभिन्न परिवर्तनों (Changes) से कैसे महत्त्वपूर्ण रूप से भिन्न हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में यह कहा जा सकता है कि मानव स्वयं गति करने वाला (self-mover) है तथा वह स्वयं से अपनी गतियों (क्रियाओं) को प्रारम्भ (initiate) करता है, निर्देशित (direct) करता है एवं नियंत्रित करता है। जबकि पर्वत, मिट्टी, फूल आदि चीजें स्वयं से गति नहीं करती अर्थात्. एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं जा सकतीं। लेकिन केवल 'स्वयं गति करना' पद से मानव क्रियाओं को अन्य परिवर्तनों या गतियों से विभेदित नहीं कर सकते क्योंकि राकेट, जो जीवित प्राणियों की.कोटि में नहीं आता, भी स्वयं से गति करता (self-propelled) है, अपने व्यवहार को निर्देशित भी करता है, अतः क्रिया को समझने के लिए किसी अन्य मानदण्ड की आवश्यकता है। मनुष्यों की गतियाँ इसलिए क्रिया की कोटि में आती हैं कि उन्हें कर्ता (agent) अक्सर अभिप्रायपूर्वक (intentionally) करता है। जबकि पेड़ पौधे, राकेट आदि वैसा नहीं कर सकते । उन पर क्रिया की जाती है । वे अभिप्रायपूर्वक स्वयं से क्रिया नहीं कर सकते । मानव अपनी क्रिया का नियंत्रण (Control) स्वेच्छा से कर सकता है। हमारे कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि मनुष्य सदैव सक्रिय रहता है बल्कि कभी-कभी वह निष्क्रिय (passive) भी होता है तथा उस पर क्रिया की जाती है । उस स्थिति में मनुष्य एवं निम्न प्राणियों के व्यवहार में अन्तर स्पष्ट दिखाई नहीं देता। कोई व्यक्ति यह कह सकता है कि मनुष्य सदैव अपने व्यवहार को नियंत्रित नहीं कर सकता अतः वह निर्जीव व्यक्ति के समान है। उदाहरण के रूप में कोई व्यक्ति पाँचवीं मंजिल की खिड़की से गिरता है तो वह उसी प्रकार नीचे गिरेगा जैसे कि कोई बेजानदार वस्तु नीचे गिरती है। वह अपने गिरने के व्यवहार को बीच में नियंत्रित नहीं कर सकता। लेकिन यहाँ हमें दो बातों में भेद करना चाहिए-(१) क्या व्यक्ति को किसी ने धक्का दिया या (२) वह स्वयं से नीचे कूदा । उदाहरण के लिए आत्महत्या हेतु स्वयं से नीचे कूदा। प्रथम स्थिति में वह निर्जीव वस्तु के समान है लेकिन द्वितीय स्थिति वह स्थिति हैं जो मनुष्य को निर्जीव वस्तुओं से विभेदित करती है। यह बात सही है कि वह दोनों ही स्थितियों में अपने गिरने के व्यवहार को नियंत्रित नहीं कर सकता लेकिन गिरने का कारण ही उसके व्यवहार को विभेदित कर देता है। 'क्रिया के आन्तरिक कारण' एवं 'बाह्य कारण' कहकर इस भेद की व्याख्या करना समस्या का अतिसरलीकरण कहा जायेगा । उदाहरणत: ऐसी बहुत सी मानव गतियां (Human movements) हैं जिनका कारण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003842
Book TitleJinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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