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पाश्चात्य दर्शन में क्रिया-सिद्धान्त ]
[ २१७ मानव क्रिया को लेकर कोई समस्या नहीं है । मनोवैज्ञानिकों, विधिशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों, के लिये 'क्रिया' वह व्यवहार है जो किसी लक्ष्य की ओर उन्मख होता है । लेकिन 'क्रिया के बारे में प्लेटो से लेकर आज तक के दार्शनिक विभिन्न प्रकार के प्रश्न उठाते आये हैं । क्रिया के सम्बन्ध में प्रमुख रूप से पाँच प्रकार के प्रश्न दार्शनिकों ने उठाये हैं। ये प्रश्न हैं :
१. प्रत्ययात्मक प्रश्न (Conceptual) जैसा कि 'मानव क्रिया क्या है, 'व्यक्ति (Persons) क्या कर सकते हैं ?' अथवा 'व्यक्ति ने क्रिया की' ऐसा कहने का क्या अर्थ है ? तथा 'ऐसा कहने का क्या अर्थ है कि एक व्यक्ति क्रिया कर सकता है ?'
२. व्याख्यात्मक प्रश्न-मानव क्रिया की व्याख्या से सम्बन्धित प्रश्न जैसे कि 'क्या भौतिक शास्त्र, जीवविज्ञान, के सिद्धान्त एवं पद्धति मानव क्रिया को समझने के लिए पर्याप्त हैं ?' 'क्या वैज्ञानिक प्रत्ययों से इतर किन्हीं अन्य प्रत्ययों जैसे कि सोद्देश्यता (purposiveness) एवं लक्ष्योन्मुखता (goal directedness) जैसे प्रत्ययों की मानव क्रिया की व्याख्या के लिए क्या अनिवार्यता है ?
३. तत्त्वमीमांसीय प्रश्न-जैसे कि क्या सभी मानव-क्रियाएँ उत्पन्न की जाती हैं' (are caused) ? क्या मानव क्रिया उत्पन्न की जा सकती है ? इस प्रकार के प्रश्नों का सम्बन्ध इच्छा-स्वातन्त्र्य की जटिल समस्याओं से है
४. ज्ञानमीमांसोय प्रश्न-जैसे कि क्या निरीक्षण या किन्हीं अन्य साधनों के द्वारा हम यह जानते हैं कि हम क्रिया कर रहे हैं ? "हम कैसे जानते हैं कि अन्य व्यक्ति क्रिया करते हैं ?"
५. नीतिशास्त्रीय एवं परा-नीतिशास्त्रीय प्रश्न–इस कोटि में जो प्रश्न पाते हैं वे हैं-क्या क्रियाएँ अथवा उनके परिणाम अच्छे या बुरे होते हैं ? तथा ऐसा कहने का क्या अर्थ है कि व्यक्ति अपनी क्रिया या उनके परिणाम के लिए उत्तरदायी है ?'
यह बात स्पष्ट है कि क्रिया से सम्बन्धित प्रत्ययात्मक प्रश्न (Conceptual questions) ही प्रमुख प्रश्न हैं । क्रियाओं की व्याख्या, क्रियाओं के कारण, क्रियाओं का ज्ञान, क्रियाओं एवं उनके परिणामों व मूल्यांकन के लिए सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक है कि 'क्रिया' का क्या अर्थ है ? दूसरे शब्दों में, क्रिया के स्वरूप से सम्बन्धित सिद्धान्त का स्थान ताकिक दृष्टि से क्रिया के व्याख्यात्मक, तत्त्वमीमांसीय, ज्ञानमीमांसीय, नैतिक एवं परा-नैतिक (meta-ethical) सिद्धान्तों से पहले आता है । अतः हम सर्वप्रथम क्रिया के स्वरूप एवं विवरण (descriptions) से सम्बन्धित समस्याओं पर विचार करेंगे।
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