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________________ प्रस्तावना "अवर सधर्मरु श्रीधाराधिपभोजराजमुकुटप्रोताश्मरश्मिच्छटा. च्छायाकुङ्कुमपङ्कलिप्तचरणाम्भोजातलक्ष्मीधवः । न्यायाब्जाकरमण्डने दिनमणिश्शब्दाब्जरोदोमणिः, स्थयात्पण्डितपुण्डरीकतरणिः श्रीमान् प्रभाचन्द्रमाः ॥ १७ ॥ श्रीचतुर्मुखदेवानां शिष्योऽधृष्यः प्रवादिभिः । पण्डितश्रीप्रभाचन्द्रो रुद्रवादिगजाङ्कुशः ॥ १८॥" इन श्लोकोंमें वर्णित प्रभाचन्द्र भी धाराधीश भोजराजके द्वारा पूज्य थे, न्यायरूप कमलसमूह (प्रमेयकमल) के दिनमणि (मार्तण्ड ) थे, शब्दरूप अब्ज (शब्दाम्भोज) के विकास करनेको रोदोमणि (भास्कर) के समान थे। पंडित रूपी कमलोंके प्रफुल्लित करने वाले सूर्य थे, रुद्रवादि गजोंको वश करनेके लिए अंकुशके समान थे तथा चतुर्मुखदेवके शिष्य थे। क्या इस शिलालेखमें वर्णित प्रभाचन्द्र और पद्मनन्दि सैद्धान्तके शिष्य, प्रथिततर्कग्रन्थकार एवं शब्दाम्भोजभास्कर प्रभाचन्द्र एक ही व्यक्ति हैं ? इस प्रश्न का उत्तर 'हाँ' में दिया जा सकता है, पर इसमें एक ही बात नयी है । वह है-गुरुरूपसे चतुर्मुखदेवके उल्लेख होनेकी। मैं समझता हूँ कि-यदि प्रभाचन्द्र धारामें आनेके बाद अपने ही देशीयगणके श्री. चतुर्मुखदेवको आदर और गुरुकी दृष्टि से देखते हों तो कोई आश्चर्यकी बात नहीं है। पर यह सुनिश्चित है कि प्रभाचन्द्रके आद्य और परमादरणीय उपास्य गुरु पद्मनन्दि सैद्धान्त ही थे। चतुर्मुखदेव द्वितीय गुरु या गुरुसम हो सकते हैं। यदि इस शिला. लेखके प्रभाचन्द्र और प्रमेयकमलमार्तण्ड आदि के रचयिता एक ही व्यक्ति हैं तो यह निश्चितरूपसे कहा जा सकता है कि प्रभाचन्द्र धाराधीश भोजके समकालीन थे। इस शिलालेखमें प्रभाचन्द्रको गोपनन्दिका सधर्मा कहा गया है। हलेबेल्गो. लके एक शिलालेख (नं. ४९२, जैनशिलालेखसंग्रह) में होय्सलनरेश एरेयङ्ग द्वारा गोपनन्दि पण्डितदेवको दिए गए दानका उल्लेख है। यह दान पौष शुद्ध १३, संवत् १०१५ में दिया गया था। इस तरह सन् १०९४ में प्रभाचन्द्रके सधर्मा गोपनन्दिकी स्थिति होनेसे प्रभाचन्द्रका समय सन् १०६५ तक माननेका . पूर्ण समर्थन होता है। समयविचार-आचार्य प्रभाचन्द्रके समयके विषयमें डॉ. पाठक, प्रेमीजी* * श्रीमान् प्रेमीजीका विचार अब बदल गया है । वे अपने "श्रीचन्द्र और प्रभा• चन्द्र" लेख (अनेकान्त वर्ष ४ अंक १) में महापुराणटिप्पणकार प्रभाचन्द्र तथा प्रमेय. कमलमार्तण्ड और गद्यकथाकोश आदिके कर्ता प्रभाचन्द्रका एक ही व्यक्ति होना सूचित करते हैं। वे अपने एक पत्रमें मुझे लिखते हैं कि-"हम समझते हैं कि प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्रके कर्ता प्रभाचन्द्र ही महापुराणटिप्पणके कर्ता हैं । और तत्त्वार्थवृत्तिपद (सर्वार्थसिद्धिके पदोंका प्रकटीकरण), समाधितत्रटीका, आत्मानुशासनतिलक, क्रियाकलापटीका, प्रवचनसारसरोजभास्कर (प्रवचनसारकी टीका) आदिके कर्त्ता, और शायद रत्नकरण्डटीकाके कर्ता भी वही हैं।" Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003838
Book TitlePramey Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrakumar Shastri
PublisherSatya Bhamabai Pandurang
Publication Year1941
Total Pages920
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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