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प्रमेयकमलमार्त्तण्ड
पर्याप्त प्रेरणा दी है परन्तु इससे प्रभाचन्द्रकी अपनी जातिविषयक स्वतन्त्र चिन्तनवृत्तिमें कोई कमी नहीं आती। उन्होंने उसके हर एक पहलू पर विचार करके ही अपने उक्त विचार स्थिर किए ।
९२. प्रभाचन्द्रका समय
कार्यक्षेत्र और गुरुकुल-आ० प्रभाचन्द्रने प्रमेयकमलमार्त्तण्ड, न्यायकुमुदचन्द्र आदिकी प्रशस्ति में 'पद्मनन्दि सैद्धान्त' को अपना गुरु लिखा है । . श्रवणबेलगोलाके शिलालेख ( नं० ४० ) में गोल्लाचार्यके शिष्य पद्मनन्दि सैद्धान्तिकका उल्लेख है । और इसी शिलालेखमें आगे चलकर प्रथिततर्कप्रन्थकार, शब्दाम्भोरुहभास्कर प्रभाचन्द्रका शिष्यरूपसे वर्णन किया गया है । प्रभाचन्द्रके प्रथिततर्कग्रन्थकार और शब्दाम्भोरुहभास्कर ये दोनों विशेषण यह स्पष्ट बतला रहे हैं कि ये प्रभाचन्द्र न्यायकुमुदचन्द्र और प्रमेयकमलमार्त्तण्ड जैसे प्रथित तर्कग्रन्थोंके रचयिता थे तथा शब्दाम्भोजभास्करनामक जैनेन्द्रन्यास के कर्त्ता भी थे । इसी शिलालेखमें पद्मनन्दि सैद्धान्तिकको अविद्धकर्णादिक और कौमारदेववती लिखा है । इन विशेषणोंसे ज्ञात होता है कि- पद्मनन्दि सैद्धान्तिकने कर्णवेध होनेके पहिले ही दीक्षा धारण की होगी और इसीलिए ये कौमारदेवव्रती कहे जाते थे । ये मूल संघान्तर्गत नन्दिगणके प्रभेदरूप देशीगण के श्रीगोल्लाचार्य के शिष्य थे । प्रभाचन्द्रके सधर्मा श्रीकुलभूषणमुनि थे। कुलभूषण मुनि भी सिद्धान्त शास्त्रोंके पारगामी और चारित्रसागर थे । इस शिलालेखमें कुलभूषणमुनिकी शिष्यपरम्पराका वर्णन है, जो दक्षिणदेशमें हुई थी । तात्पर्य यह कि आ० प्रभाचन्द्र मूलसंघान्तर्गत नन्दिगणकी आचार्यपरम्परामें हुए थे । इनके गुरु पद्मनन्दिसैद्धान्त थे और धर्मा थे कुलभूषणमुनि । मालूम होता है कि प्रभाचन्द्र पद्मनन्दि से शिक्षा-दीक्षा लेकर धारानगरी में चले आए, और यहीं उन्होने अपने ग्रन्थों की रचना की । ये धाराधीश भोजके मान्य विद्वान् थे । प्रमेयकमलमार्त्तण्डकी "श्रीभोजदेवराज्ये धारानिवासिना" आदि अन्तिम प्रशस्तिसे स्पष्ट है कि - यह ग्रन्थ धारानगरीमें भोजदेवके राज्यमें बनाया गया है । न्यायकुमुदचन्द्र, आराधनागद्यकथाकोश और महापुराणटिप्पणकी अन्तिम प्रशस्तियोंके “श्रीजयसिंहदेवराज्ये श्रीमद्धारा निवासिना" शब्दोंसे इन ग्रन्थोंकी रचना भोजके उत्तराधिकारी जयसिंहदेवके राज्यमें हुई ज्ञात होती है । इसलिए प्रभाचन्द्रका कार्यक्षेत्र धारानगरी ही मालूम होता है। संभव है कि इनकी शिक्षा-दीक्षा दक्षिण में हुई हो ।
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श्रवणवेल्गोलाके शिलालेख नं० ५५ में मूलसंघके देशीगणके देवेन्द्रसैद्धान्तदेवका उल्लेख है । इनके शिष्य चतुर्मुखदेव और चतुर्मुखदेव के शिष्य गोपनन्दि थे । इसी शिलालेखमें इन गोपनन्दिके सधर्मा एक प्रभाचन्द्रका वर्णन इस प्रकार किया गया है
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१ जैनशिलालेखसंग्रह माणिकचन्द्रग्रन्थमाला |
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