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________________ प्राचीन स्थितिका अन्वेषण में ही प्रकट हुई थी। छा० उप० (५-११) में लिखा हैउपमन्युका पुत्र प्राचीनशाल, पुलुषका पुत्र सत्ययज्ञ, भाल्लविके पुत्रका पुत्र इन्द्रद्युम्न, शर्कराक्षका पुत्र जन और अश्वतराश्वका पुत्र बुडिल-ये महागृहस्थ और परम श्रोत्रिय एकत्र होकर परस्पर विचार करने लगे कि हमारा आत्मा कौन है और ब्रह्म क्या है ? __उन्होंने स्थिर किया कि यह अरुणका पुत्र उद्दालक इस समय इस वैश्वानर आत्माको जानता है अतः हम उसके पास चलें। ऐसा निश्चय करके वे उसके पास गये। उसने सोचा कि ये परम श्रोत्रिय महागृहस्थ मुझसे प्रश्न करेंगे, किन्तु मैं इन्हें पूरी तरहसे नहीं बतला सकूँगा। अतः मैं इन्हें दूसरा उपदेष्टा बत गादूं।' यह सोचकर उसने इनसे कहा-इस समय केकयकुमार अश्वपति इस वैश्वानर आत्माको अच्छी तरह जानता है। आओ, हम उसके पास चलें। ___ अपने पास आये हुए उन ऋषियोंका राजाने सत्कार किया और दूसरे दिन प्रातःकाल होते ही उनसे कहा-मैं यज्ञ करनेवाला हूँ, मैं एक एक ऋत्विकको जितना धन दूंगा उतना ही आपको भी दूंगा। अतः आप लोग यहीं ठहरें। वे बोले-जिस प्रयोजनसे कोई पुरुष कहीं जाता है उसे चाहिये कि वह अपने उसी प्रयोजनको कहे। इस समय आप वैश्वानर आत्माको जानते हैं। उसीका आप हमारे प्रति वर्णन कीजिये। वह उनसे बोला-मैं प्रातःकाल आप लोगोंको इसका उत्तर दूंगा। तब दूसरे दिन पूर्वाह्नमें वे हाथोंमें समिधा लेकर राजाके Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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