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________________ जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका एक बार प्रजापतिने कहा-'जो आत्मा पापशून्य, जरा रहित, मृत्यु रहित, शोक रहित, क्षुधा रहित, प्यास रहित, सत्य काम और सत्य संकल्प है उसे खोजना चाहिये । और उसे विशेषरूपसे जानना चाहिये । जो उस आत्मा को जान लेता है, वह सम्पूर्ण लोक और समस्त कामनाओंको प्राप्तकर लेता है।' । प्रजापतिके इस वाक्यको सुर असुर दोनोंने ही जान लिया। वे कहने लगे-हम उस आत्माको जानना चाहते हैं जिसके जानने पर सम्पूर्ण लोक और समस्त भोग प्राप्त हो जाते हैं। ऐसा विचारकर देवताओंका राजा इन्द्र और असुरोंका राजा विरोचन दोनों प्रजापतिके पास आये। उन्होंने बत्तीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य वास किया। तब उनसे प्रजापतिने कहा- तुम यहां क्यों रह रहे हो ? उन्होंने कहा-आत्माको जाननेकी इच्छासे हम यहां रह ___ उनसे प्रजापतिने कहा-यह जो पुरुष नेत्रोंमें दिखाई देता है, वह आत्मा है, वह अमृत है अभय है, ब्रह्म है । यह उत्तर सुनकर दोनों चले गये। उनमेंसे विरोचन असुरोंके पास पहुँचा और उन्हें आत्मविद्या बतलाई-इस लोकमें यह शरीर ही आत्मा है यही पूजनीय और सेवनीय है। शरीरकी पूजा करनेवाला इस लोक परलोक दोनोंको प्राप्त करता है। किन्तु इन्द्रने सोचा यदि शरीर ही आत्मा है तो अमरत्व कहाँ रहा ? अतः वह पुनः आकर बत्तीस वर्ष तक प्रजापतिके पास रहा। तब प्रजापतिने कहा-'यह जो स्वप्नमें पूजित होता हुआ विचरता है यह आत्मा है, यह अमृत है, अभय है और यही ब्रह्म है।' इस उत्तरसे सन्तुष्ट होकर इन्द्र लौटा। किन्तु मार्गमें उसने पुनः विचार किया कि यद्यपि स्वप्न शरीर इस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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