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________________ ६६६ जै० सा० इ० पू०-पोठिका सातवेंमें साध्वियोंके लिये नियम स्वाध्याय आदिका विधान है। आठवेंमें बतलाया है कि साधुको गृहस्थकी आज्ञा लेकर ही उसके मकानमें ठहरना तथा उसके पटा आदिका व्यवहार करना चाहिये । भिक्षाके लिये जाते समय किसी साधुको किसी साधुका कोई उपकरण पड़ा मिले तो पूछकर जिसका हो उसको दे दे। तथा भोजन कितना करना चाहिये, आदि बातोंका कथन है । नौवें उद्देसक में शय्यातरका अधिकार है । जो गृहस्थ साधुको अपना मकान ठहरनेके लिये देता है उसे शय्यातर कहते हैं। उसका तथा उसके दास-दासियों तकका भोजनन करनेकी मर्यादा आदिका वर्णन है। दसवेंमें प्रतिमा, परिषह व्यवहार आदि अनेक विषयोंका तथा अमुक अमुक आगमकी शिक्षा कब देना चाहिये, आदि बातोंका कथन है। मूल ग्रन्थ गद्यमें है । उसपर प्राकृत गाथाओंमें भाष्य है । उस पर मलयगिरिकी टीका है। ___ चौथे छेद सूत्र दसा श्रुतस्कन्धमें दस अध्ययन हैं। तीसरे स्थानांगके दसवें स्थानमें आयार दसाओं'नामसे इसका उल्लेख है तथा उसमें उसके दस अध्ययनोंके जो नाम दिये हैं वे ही नाम वर्तमान अध्ययनोंके भी हैं। इससे श्री' वेबर इसे प्राचीन मानते थे। प्रथम सात दशा 'सुयं मे आउसं तेनं भगवया एवं आक्खायं' वाक्यसे आरम्भ होती हैं और 'त्ति वेमि'के साथ समाप्त होती हैं। पहली दशामें असमाधिके बीस स्थानोंका कथन है । दूसरीमें अशक्ति लाने वाले इक्कीस सबल दोषोंका कथन है। तीसरीमें गुरुकी ३३ असादनाओंका चौथी दशामें आचार्यकी आठ सम्पदाओंका, पाचवें अध्ययनमें चित्त समाधिके दस स्थानोंका, १ इं० ए० जि० १६, पृ० २११ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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