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श्रुतपरिचय
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१० दसवां उपग पुष्पिका है। इसमें भी दस अध्ययन हैं । इसमें बतलाया है कि दस देवी-देवता पुष्पक विमान में बैठ कर महावीर भगवानकी बन्दना करनेके लिये आते हैं। वहां भगवान गौतम गणधर से उनके पूर्वभव कहते हैं ।
११ ग्यारवां उपांग पुष्पचूलिका है। इसमें भी दस अध्ययन है। इसमें भी पुष्पिका की तरह श्री ही आदि दस देवियोंके पूर्व भवों के वृत्तान्त हैं।
१२ बारहवां उपांग वृष्णिदशा है । इसमें बारह अध्ययन है । जिनमें अरिष्टनेमि तीर्थङ्करसे दीक्षा लेने वाले वृष्णिवंश के बारह राज कुमारों की कथाएं हैं। प्रथम अध्ययन में बलदेव के और कृष्णके भतीजे निषढ़ कुमार की कथा है ।
पुत्र
न. ८ से १२ तक के उपांगो को निरयावलि सूत्र कहते हैं । डा० 'विन्टर नीटूज़ का अनुमान है कि यह मूलतः एक ही ग्रन्थ था और उसके पांच विभाग थे। सम्भव तया उपांगो की संख्या बारह करनेके लिये उसके पांच विभागों को पांच ग्रन्थों का रूप दे दिया गया ।
यहां यह लिखने की आवश्यकता नहीं है कि बारह अंगों के साथ इन बारह उपांगो का कोई सम्बन्ध नहीं है । दोनों की विषय तालिकाओं के देखनेसे ही यह बात स्पष्ट हो जाती है । छै छेद सूत्र
छेद सूत्रोंका अन्तर्भाव कालिक श्रुत में किया गया है तथा 'चारअनुयोगों में से चरणकरणानुयोग में । स्पष्ट है कि छेद सूत्रों का विषय मुनियोंके आचार से सम्बद्ध है ।
१ - हि. इं० लि०, जि० २, पृ० ४५७–४५८ ।
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