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जै० सा० इ०-पूर्व-पीठिका
दि० अंगबाह्यका विषय परिचय आगे धवला' जयधवलाके आधार पर दिगम्बर सम्मत अग बाह्यके भेदोंका विषय परिचय दिया जाता है ।
१ सामायिक नामक अंगबाह्य द्रब्य, क्षेत्र, काल और भावकी अपेक्षा समता भाव रूप सामायिकका वर्णन करता है। तीनों सन्ध्याओंमें या पक्ष और मासके सन्धिदिनोंमें अथवा अपने इच्छित समयमें बाह्य और अतरंग पदार्थों में कषायका निरोध करनेको सामायिक कहते हैं। उसके चार भेद हैं-द्रव्य. सामायिक, क्षेत्र सामायिक, काल सामायिक और भाव सामायिक। सचित्त और अचित्त द्रव्योंमें राग द्वेषके निरोध करनेको द्रव्य सामायिक कहते हैं। ग्राम, नगर, देश आदिमें राग द्वेषका निरोध करना क्षेत्र सामायिक है। छ ऋतुओंमें साम्य भाव रखनेको या राग द्वेष न करनेको काल सामायिक कहते हैं। समस्त कषायोंका निरोध करके तथा मिथ्यात्वको दूर करके छ द्रव्य विषयक निर्बाध अस्खलित ज्ञानको भाव सामायिक कहते हैं। सामायिक नामक अंग बाह्यमें इन सबका वर्णन रहता है।
२ चतुर्विशतिस्तव नामक अग बाह्य उस उस काल सम्बन्धी चौबीस तीर्थङ्करोंकी वन्दना करनेकी विधि, उनके नाम, आकार, ऊँचाई, पाँच महा कल्याणक, चौतीस अतिशयोंका स्वरूप और तीर्थङ्करोंकी कृत्रिम अकृत्रिम प्रतिमाओं तथा चैत्यालयोंका वर्णन करता है।
१--षटर्ख०, पु० १,१०६६-६८ तथा पु०६, पृ० १८७-१६१ । क० पा०, भा० १, पृ०६७-१२१ ।
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