________________
श्रुतपरिचय
६४७
४ – इसमें १ भगवान महाबीर के तीर्थ में हुए सात निन्हवों के नाम, उनके कर्ता व्यक्ति और उनके स्थानोंका निर्देश है ।
२
५ - श्रेणिक के तीर्थकर होने का कथन करते हुए लिखा है - कि जैसे महाबीर भगवान ने निग्रन्थ श्रमणों के लिये नंगा रहना, दीक्षित होना, स्नान नहीं करना, दन्तधावन नहीं करना, छाता नहीं लगाना, जूता नहीं पहनना, भूमि शय्या, फलक शय्या काष्ठ शय्या, केश लोच, ब्रह्मचर्य, आदि का उपदेश दिया, वैसे श्रेणिक भी प्रथम तीर्थकर महापद्म होकर निर्ग्रन्थ श्रमणों के लिये यही सब मार्ग बतलायेगा ।
६ - श्व ेताम्बर ३ मत में दस आश्चर्य माने गये हैं, जिनमें एक महाबीर का गर्भपरिवर्तन भी है उन दस अच्छेरों का भी इसमें निर्देश है ।
इस अंग में निर्दिष्ट कतिपय विषयों से इसकी प्राचीनता
१ – 'समणस्स णं भगवो महावीरस्य तित्यंसि सत्त पवतरण निराहगा पं०, तं० – बहुरता जीवपतेसिता श्रवतिता सामुच्छेइत्ता दोकिरिता तेरासिता बद्धिता । ( सू० ५८७)।
२—.......
• से जहानाम ते अज्जो ! मते समणाणं निग्गंथाणं नग्गभावे मुंडभावे राहाणते श्रदंतवणे एवमेव महापउने वि अरहा समरणाणं निग्गंथाणं नग्गभावं जाव लावलद्ध वित्ति पराणवेहिती ...( सू० ६६३ ) ।
३ – 'दस अच्छेरगा पं०, तं० -- उवसग्ग गब्भहरणं इत्थीतित्थे भाविया परिसा । कणहस्स अवरकंका उत्तरणं चंद सूराणं ॥ १ ॥ हरिवंस कुलुप्पत्ती चमरुप्पातो त अट्ठस्य सिद्धा | संजतेसु पूया दसवि तेण काले || २ || '
Jain Educationa International
..
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org