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________________ कठिन हालगे। होमके घाव भर गया। रखना कठिन जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका नलकी राजधानीके निकट पहुँचा, तो उसे नगरीमें प्रवेश करना कठिन होगया, क्योंकि वेदध्वनि करते हुए श्रोत्रियोंके शब्द उसके कानों में पड़ने लगे। होमके घीकी गन्धसे उसकी घ्राणशक्ति नष्ट होगई, यज्ञका धूम उसकी आँखोंमें भर गया। अतिथियोंके पैर धोनेके जलसे पिच्छलित हुए आँगनोंमें उसे पैर रखना कठिन होगया, यज्ञकी अग्निकी गर्मीसे उसकी ऐसी दशा होगई, मानों कुम्हारके आवेमें जा पड़ा है। नगरमें जगह-जगह यज्ञके पशुओं को बाधनेके लिए गढ़े हुए यूप उसे ऐसे लगे मानों पृथ्वीमें जगहजगह कीले गढ़े हुए हैं। कलिने अपनी प्रिया हिंसाको बहुत खोजा, किन्तु उसे वह दृष्टिगोचर न हुई। गोमेध यज्ञमें बलिदान करनेके लिए खड़ी गौको देखकर वह उसका ओर दौड़ा, किन्तु यह हिंसा तो वैदिकी होनेसे हिंसा ही नहीं थी अतः वहाँ भी उसकी दाल नहीं गली। आगे ब्राह्मणोंको मदिरापान करते देखकर कलि बहुत प्रसन्न हुआ। किन्तु जब उसने देखा कि वे ब्राह्मण सौत्रामणि यज्ञ कर रहे हैं ( इस यज्ञमें मदिरापान विधेय है ) तो वह सिर धुनने लगा। एक स्थानपर एक मनुष्यको ब्राह्मणका वध करते देखकर कलि बहुत प्रसन्न हुआ, किन्तु जब उसने देखा कि वह मनुष्य सर्वमेध नामका यज्ञ कर रहा है तो उसे ज्वर ही आ गया (सर्वमेध' में प्रत्येक जातिके एक-एक प्राणिके वध का विधान है। ___'तब कलिने अपने मित्र जैन और बौद्ध साधुओंकी खोज की, क्योंकि वे वैदिक हिंसाके विरोधी हैं, किन्तु उसे जिन (बौद्ध) के स्थानपर तो अजिन-कृष्णमृगका चर्म दिखाई दिया और क्षपणक ( जैन साधु ) के स्थान में अक्षपण-जुआ खेलनेके पासे १. सर्वमेधे हि तत्तज्जातीयैकैक प्राणिहिंसांधिकारात् ब्राह्मणो ब्राह्मणमालभेत' इति ब्रह्मवधस्य वैधत्वातू ।। नै. टी. १७ स., १८६ श्लो. । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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