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जै० सा० इ० पू०-पीठिका विशेष अनुसन्धान की आवश्यकता है; क्यों कि तीर्थङ्करकी वाणी को सर्व भाषात्मक कहा है और ऊपर जो श्रुत के अक्षर बतलाये हैं उनमें सब भाषाओं के अक्षरों का समावेश हो जाता है।
दृष्टिवाद में वर्णित विषय का परिचय अकलंक देव ने तत्त्वार्थ वार्तिक की वृत्ति में बारह अंगों में वर्णित विषय का संक्षिप्त निर्देश किया है। उनके पश्चात् हुए वीरसेन स्वामी ने भी अपनी धवला तथा जयधवला टीका में बारह अंगों का विषय परिचय दिया है । प्रथम यहाँ दृष्टिवाद के विषय का परिचय दिया जाता है। टिप्पण में श्वेताम्बर साहित्यसे प्राप्त जानकारी का भी निर्देश किया जाता है। ___ दृष्टिवाद के पाँच भेद हैं-परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत चूलिका। इनमें से केवल पूर्वगत के १४ भेदों का विषय परिचय अकलंक देव ने कराया है। शेष चार भेदों का नहीं कराया। किन्तु वीरसेन स्वामी ने उनका भी विषय परिचय दिया है। पहले उन्हीं चार भेदों का विषय परिचय दिया जाता है।
१ परिकर्म '" परिकर्म के पाँच भेद हैं-चन्द्र प्रज्ञप्ति, सूर्य प्रज्ञप्ति, जम्बद्वीप प्रज्ञप्ति, द्वीप सागर प्रज्ञप्ति और व्याख्या प्रज्ञप्ति । चन्द्र प्रज्ञप्ति छत्तीस लाख पाँच हजार पदों के द्वारा चन्द्रमा के विमान, आयु, परिवार, ऋद्धि, गमन, हानि-वृद्धि तथा सकल ग्रासी, अर्ध भाग ग्रासी या चतुर्थ भागग्रासी ग्रहण आदि का वर्णन करती है। सूर्य प्रज्ञप्ति पाँच लाख तीन हजार पदों के द्वारा सूर्य सम्बन्धी आयु, मण्डल, परिवार, ऋद्धि, प्रमाण, गमन, बिम्ब की ऊँचाई,
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