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जै० सा० इ० पू०-पीठिका अन्तर्भाव श्रुतज्ञानके उक्त बीस भेदोंमेंसे किसी भी भेदमें नहीं हो सकता ?
समाधान- अनुयोग द्वार और अनुयोगद्वार समासमें इन सबका अन्तर्भाव होता है। और अनुयोग द्वार तथा अनुयोग द्वार समास प्राभृत प्राभृतके ही अवयव हैं, ऐसा कोई नियम नहीं है। अथवा प्रतिपत्ति समास श्रु तज्ञानमें इनका अन्तर्भाव कहना चाहिये। किन्तु पश्चादानुपूर्वीकी विवक्षा करने पर पूर्व समास श्रु तज्ञानमें इनका अन्तर्भाव होता है। ___ उक्त समाधान से प्रकट होता है कि वस्तु, प्रामृत और प्राभूत प्राभृत नामक अधिकारों का सम्बन्ध केवल पूर्वो से हैं, किन्तु अनुयोग द्वार, प्रतिपत्ति वगैरह ग्यारह अंगों आदि में भी होते हैं । पूर्व निर्दिष्ट श्वेताम्बर साहित्य से भी यही तथ्य प्रकट होता है, जैसा पूर्व में लिख आये हैं।
इस तरह से ग्यारह अंगों और पूर्वोमें अध्यायगत भेद था, इस बात का समर्थन दिगम्बर साहित्य से भी होता है । तथा पूर्वो को लेकर जो श्रुत ज्ञान के भेद बतलाये गये हैं वे विकास क्रम या वृद्धि क्रम को दृष्टि में रखकर बतलाये हैं। अतः पूर्वो का अध्ययन अथवा ज्ञान क्रम से होता था, उससे भी यही निष्कर्ष निकलता है।
पदों का प्रमाण " अंगों और पूर्वो के पदों का प्रमाण दिगम्बर साहित्यमें' विस्तार से बतलाया है । श्वेताम्बर साहित्य में भी बतलाया है।
१-षटखं, पु. १, पृ०६६ -१०७ । २-'अट्ठारस पय सहस्सा आयारे दुगुण दुगुण सेसेसु ।-स. च. क., पृ. १७ ।
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