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________________ जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका वादियों के कतिपय नामों का निर्देश किया है, उसका क्या आधार था, यह हम बतलानेमें असमर्थ हैं। फिर भी यह स्पष्ट है कि अकलंक देव के द्वारा निर्दिष्ट उक्त सभी वादी प्रायः वैदिक ऋषि हैं। और अक्रियावादियोंमें सांख्य दर्शन के पुरस्कर्ताओं का तथा अज्ञान वादियों में ब्रह्म सूत्रकार वादरायण और पूर्व मीमांसा के प्रवर्तक जैमिनि का नाम निर्देश किया है। ये सभी दर्शनकार प्राचीन हैं। किन्तु बौद्धमत के प्रवर्तक का या किसी प्राचार्य का नाम निर्देश अकलंक देव ने नहीं किया है। यद्यपि उनके समय में बौद्ध दर्शन की ही तूती बोल रही थी और अपने ग्रन्थों में उन्होंने धर्मकीर्ति वगैरहका काफी खण्डन भी किया है। इससे ऐसा लगता है कि उनके द्वारा निर्दिष्ट नाम अवश्य ही किसी परम्परागत स्रोत से उन्हें प्राप्त हुए होंगे। सिद्धसेन गणि ने भी अपनी तत्त्वार्थ भाष्य टीका के आठवें अध्याय के आरम्भ में वे ही नाम दिये हैं, जो अकलंकदेवके तत्त्वार्थ वार्तिकसे लिये गये प्रतीत होते है। किन्तु सिद्धसेन गणि ने यह नहीं लिखा कि दृष्टिवादमें इन मतों का निरूपण और निराकरण था। यह तो केवल अकलंकदेवने ही लिखा है। अकलंक देव ने दृष्टिवाद के पाँच भेद बतलाये हैं-परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग पूर्वगत और चूलिका। और पूर्वगत के चौदह भेद गिनाये हैं, तथा यह भी बतलाया है कि किस पूर्व में किन २ विषयों का वर्णन था। अकलंक देव के पूर्ववर्ती पूज्यपाद ने सर्वार्थ सिद्धि (अ० १, सू० २०) नामक अपनी तत्त्वार्थवृत्ति में भी दृष्टिवाद के उक्त पाँच भेद तथा पूर्व के चौदह भेदों के नाम दिये हैं। किन्तु उन पूर्वो में वर्णित विषय का निर्देश नहीं किया। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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