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________________ श्रुतपरिचय ६०७ और उसका नाम इला या एला हो गया। इस अवस्था में उसके पुरुरवा नामक पुत्र हुआ। हम नहीं कह सकते कि निर्दिष्ट एलापुत्र वही है या दूसरा ( त० भा० टी०, भा० २ की प्रस्ता०, पृ०६१)। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी एक ऐल नामक राजा का निर्देश मिलता है। ___औपमन्यव-छान्दोग्य उपनिषद् के अनुसार औपमन्यव प्राचीन शाल, सत्ययज्ञ पौलुषि, इन्द्रद्युम्न भाल्लवेय, जन शार्कराक्ष्य और बुडिल आश्वतराश्वि ये पाँच महाश्रोत्रिय आत्माका स्वरूप जानने के लिए गए थे । उल्लिखित औपमन्यव और प्राचीन शाल औपमन्यव एक ही प्रतीत होते हैं। , ऐन्द्रदत्त- यह नाम नहीं मिलता। इन्द्रदत्त भी हो सकता है, किन्तु इन्द्रदत्त नामके भी किसी व्यक्तिका पता नहीं चलता। हाँ, इससे मिलता जुलता इन्द्रोत शौनक नाम मिलता है। इन्द्रोत शौनक ने जनमेजयको अश्वमेध यज्ञ कराया था। अयःस्थूण-शतपथ ब्राह्मण (१४-६३-१५,२० ) में एक गुरु शिष्य परम्परा दी है। उसमें 'जानकि आयस्थूण' नाम मिलता है । अकलंक देवके अनुसार इन सब वादियों के मतोंका वर्णन और निराकरण दृष्टिवादमें था। अकलंक देवने जो तत्तत् १-'प्राचीनशालोपमन्यवः सत्ययज्ञः पौलुषिरिन्द्रद्युम्नो भाल्लवेयो जनः शार्कराक्ष्यो बुडिल श्राश्वतराश्वि...ते ह संवादयांचक्रु रुद्दालको वै भगवन्तोऽयमारुणिः संप्रतीममात्मानं वैश्वानरभमभ्येति-छा० उ० ५-११-१.४.। २-'एवमुक्त्वा तु राजानमिन्द्रोतो जनमेजयम् । याजयामास विधिवद् वाजिमेधेन शौनकः ॥३८।।-म० भा०, शान्ति०, अ० १५१ । शतपथ. १३-५-३-५ में भी इन्द्रोत शौनक नाम मिलता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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