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________________ श्रुतपरिचय ( उत्पादपूर्व), अग्गाणीय, वीरिश्र, अत्थिनत्थिप्पवाय, नाणप्पवाय (ज्ञानप्रवाद), सञ्चप्पवाय (सत्यप्रवाद), आयप्पवाय (आत्मप्रवाद), पच्चक्खाणपवाय ( प्रत्याख्यानप्रवाद ), विज्जारगुप्पवाय ( विद्यानुप्रवाद), अझ ( अवन्ध्य ) पाणाऊ, किरियाविसाल, लोक बिंदुसार। उत्पाद पूर्व में दसवस्तु और चार चूलिकावस्तु कहे हैं, अप्रायणी पूर्वमें चौदह वस्तु और बारह चूलिकावस्तु अधिकार कहे हैं। वीर्यपूर्व में आठवस्तु और आठ चूलिका वस्तु कहे हैं, अस्ति नास्ति प्रवाद पूर्व में अठारह वस्तु और दस चूलिका वस्तु कहे हैं। चूलिका वस्तु अधिकार इन चार ही पूर्वोमें कहे हैं आगे केवल वस्तु अधिकार ही वतलाये है जो इस प्रकार हैं - ज्ञानप्रवाद में बारह वस्तु अधिकार कहे हैं । सत्यप्रवाद पूर्व में दो वस्तु अविकार हैं. आत्म प्रवादमें १६, कर्मप्रवाद में तीस, प्रत्याख्यान पूर्व में वीस, विद्यानुप्रवादमें पन्द्रह, अवन्ध्य पूर्वमें तेरह क्रियाविशाल पूर्व में तीस और लोकविन्दुसारमें २५ वस्तु अधिकार हैं । ५८५ अनुयोग के दो भेद हैं- मूल प्रथमानुयोग और गंडिकानुयोग | अरहंतोंके पूर्व भव, देवलोक गमन, आयु, देवलोक से च्यवन, तीर्थङ्कररूपमें जन्म, अभिषेक, राज्यश्री, दीक्षा, उग्रतप, केवल ज्ञानकी उत्पत्ति, तीर्थप्रवर्तन, उनके शिष्य, गण, गणधर, श्रयिका, चतुर्विधसंघका परिमाण, मन:पर्ययज्ञानी, अवधिज्ञानी, श्रुतज्ञानी. वादी, अनुत्तरोंमें जानेवाले उत्तर विक्रिया करनेवाले, मुनियोंका परिमाण, मुक्तिमें जाने वालोंका परिमाण, आदि का जिसमें कथन हो उसे मूलप्रथमानुयोग कहते हैं । और जिसमें कुलकर गण्डिका, तोर्थङ्कर गण्डिका, चक्रवर्तीगण्डिका, दसार गण्डिका, बलदेव गण्डिका, वासुदेव गण्डिका, गणधर गण्डिका, भद्रबाहु गण्डिका, तपकर्म गण्डिका, हरिवंश गण्डिका, उत्सर्पिणी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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