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________________ जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका नहीं है। किन्तु ऋग्वेदके पुरुष सूक्तको लेकर कुछ विद्वानोंका यह मत है कि इसमें प्राचीन नरमेध प्रथाका वर्णन है, क्योंकि शुक्लयजुर्वेदमें यही सूक्त पुरुषमेधके अर्थमें लिया गया है। ____ यज्ञानुष्ठानके लिए चार ऋत्विजोंकी आवश्यकता होती थीहोता, उद्गाता, अध्वर्यु तथा ब्रह्मा । होता मंत्रोका उच्चारण करके देवताओंका आह्वान करता था। इस मंत्रसमुदायका संकलन ऋग्वेदमें है। उद्गाता ऋचाओंको मधुर स्वरसे गाता था, इसके लिये सामवेद है। यज्ञके विविध अनुष्ठानोंका सम्पादन करना अध्वर्युका कर्तव्य था, इसके लिये यजुर्वेद है। ब्रह्मा सम्पूर्ण यागका निरीक्षक था, जिससे अनुष्ठानमें कोई विघ्नबाधा न आवे, इसके लिये अथर्ववेद है। __ सोमयागके लिए होता, उद्गाता और अध्वर्युके साथ सात ऋत्विजोंका उल्लेख ऋग्वेदमें किया है। किन्तु जब हम अर्वाचीन संहिताओं और ब्राह्मण ग्रन्थोंको देखते हैं तो यज्ञोंका ही प्राधान्य प्रतीत होता है। ऋत्विजोंकी संख्या भी १६-१७ तक पहुंच गई है। सोमयाग और पशुयाग बहुत पेचीदा हो गये हैं। ऋग्वेदके देवताओंके स्थानपर यज्ञोंने आधिपत्य जमा लिया है, और देवताओंका प्रभाव लुप्त हो गया है। केवल यज्ञ देवताको सब मानते हैं। यह यज्ञकर्ताके सामने देवताओंको भी झुका सकनेकी सामर्थ्य रखते हैं। शतपथ ब्राह्मण( १।३।३।३-७) में कहा है-'यज्ञ विष्णु था, और वह वामन था। बादमें वह धीरे-धीरे बढ़ता गया और उसका सर्वत्र प्रचार हुआ। फिर आगे कहा है-'देवोंके पुरुषमेध कर चुकनेके बाद पुरुषके अवयवोंसे एक ज्योति निकली, और उसने एक घोड़ेके शरीरमें प्रवेश किया, फिर गायमें, फिर भेडमें, फिर बकरेमें, फिर पृथ्वीमें, पृथ्वीसे वह जौ और चावलमें आई।' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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