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श्रुतपरिचय दृष्टिवाद का विवरण
दृष्टिवाद' में सर्व भावोंको प्ररूपणा होती है। संक्षेपसे दृष्टिवादके पांच भेद हैं—परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, अनुप्रोग, चूलिका । परिकर्मके सात भेद हैं-सिद्धश्रेणिका, मनुष्यश्रेणिका, स्पृष्ठश्रेणिका, अवगाढश्रेणिका, उबसंपज्जणश्रेणिका, विप्पजहणश्रेणिका, चुलाचुरश्रेणिका । सिद्धश्रेणिका परिकर्मके चौदह भेद हैं-माउगापयाई : मातृकापदानी ), एगहिअपयाई, अट्ठपयाई, पाढो आमासपयाई केउभूअ (केतुभूत), रासिवद्ध एगगुण, दुगुण, तिगुण, केउभूत्र, पडिग्गह, संसारपडिग्गह, नंदावत्त, सिद्धावत्त । मणुस्सश्रोणिका परिकर्मके भी चौदह भेद हैं जो उक्त प्रकार हैं, केवल अन्तिम सिद्धावत्तके स्थानमें 'मगुस्सावत्त' नाम है। पुट्ठ सेणिया परिकम्मके ११ भेद हैं-पाठोआमासपयाइं. केतुभूत, रातिबद्ध, एगगुण. दुगुण, तुिगुण, केउभूय, पडिग्गह, संसारपडिग्गह, नन्दावत्त पुट्ठावत्तं । श्रोगाढ़सेगिमा परिकम्मके ग्यारह भेद हैं, जो उक्तप्रकार हैं केवल अन्तिम पुट्ठावत्तके स्थानमें प्रोगाढवत्त नाम है। उपसंपन्जणसेणिश्रा परिकर्मके भी पूर्ववत्ग्यारह भेद हैं केवल अन्तिम नाम ओगाढावत्तके स्थानमें उवसंपज्जणावत्त नाम है। इसी तरह विप्पजहसेणिया परिकर्मके भी उक्त प्रकार ग्यारह भेद हैं । केवल अन्तिम नाम उवसपज्जणावत्तके स्थानमें विप्पजहणात्त नाम है। इसी तरह चुआचुअसेणिया परिकर्मके भी ग्यारह भेद है। अन्तिम नाम विप्पजहणावत्तके स्थानमें चुआचुआवत्त नाम है । इस प्रकार मूलभेदोंकी अपेक्षा परिकर्मके सात भेद हैं और उत्तर भेदोकी अपेक्षासे ८३ भेद है।
१-नन्दी; पृ० २३५ श्रादि ।
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