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जै० सा० इ०-पूर्व-पीठिका दीक्षितको आशीविषभावना, पन्द्रह वर्षके दीक्षितको दृष्टिविषभावना और सोलह वर्षके दीक्षितको चारण भावना,सतरह वर्षके दीक्षितको महास्वप्न भावना और अट्ठारह वर्षके दीक्षितको तेजो निसर्ग भावना, पढ़ाना उचित है। किन्तु व्यवहार सूत्रके अनुसार चौदह वर्षके दीक्षितको स्वप्न भावना, पन्द्रह वर्षके दीक्षितको चारण भावना, सोलह वर्षके दीक्षितको तेजोनिसर्ग भावना, सत्रह वर्षके दीक्षितको आसीविष भावना और अट्ठारह वर्षके दीक्षित को दृष्टिविष भावना पढ़ाना उचित है। इस अन्तरका कारण क्या है हम नहीं वह सकते । ___ डा. वेबरका कहना है कि उक्त गाथाओंमें अङ्गोंके सिवाय जो आठ नाम पाये जाते हैं वे नन्दिसूत्रमें नहीं है। अतः इन गाथाओंका निर्माण उस समय हुआ था, जब वर्तमान आगमोंके अवशिष्ट भाग उनमें सम्मिलित नहीं किये गये थे और उनका स्थान लुप्त हुए उन आठ अध्ययनोंने ले रखा था, जिनका निर्देश उक्त गाथाओंमें पाया जाता है। ___ हम नहीं समझते कि डा० वेबर जैसे बहुदर्शी विद्वानने यह कैसे लिखदिया कि उक्त गाथाओंमें छै अङ्गोंके सिवाय जो अन्य आठ नाम दिये हैं, वे नन्दीसूत्रमें नहीं हैं। आगे हम नन्दिसूत्रके अनुसार श्रुतके भेदोंका विवेचन करेंगे। उनमें कालिक श्रुतके भेदोंमें प्रायः उक्त सभी नाम दिये हुए हैं। ये सब अङ्ग साहित्य न होकर अङ्गवाह्य साहित्य था। ___ इसी तरह डा० वेबरने उक्त गाथाओंको प्राचीन बतलाया हे क्योंकि उनमें दृष्टिबाद नाम आया है और इस लिए गाथाओंके रचना कालके समय दृष्टिवादका अस्तित्व स्वीकार किया है। किन्तु उक्त गाथाएँ हरिभद्रसूरिके पश्चवस्तुक नामक ग्रन्थसे
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