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ज० सा० इ०-पूर्व पीठिका यह कोई नहीं कह सकता कि वर्तमान आगमोंका उन मूल आगमोंके साथ क्या सम्बन्ध है ? वेबरका मत है कि मौजूदा आगम दूसरी और पांचवीं शताब्दीके बीचमें रचे गये । किन्तु जेकोवीका झुकाव है कि उनका कुछ भाग पटना से ही अपेक्षा. कृत थोड़ेसे परिवर्तनके साथ आया है।'-आउट रि० लि. इं०, पृ०७६। ___ आगे वह लिखते हैं-"किन्तु यह अधिक सम्भव है कि प्राचीन साहित्य अंशतः सुरक्षित रहा हो। यद्यपि यह निस्सन्देह है कि संघभेदके समयसे अर्थात् ई० ८० से श्वेताम्बर साधुओंके द्वारा अपने सम्प्रदायके अनुकूल उसमें संशोधनकी प्रवृत्ति चालू रही . ...। आगमोंमें श्वेताम्बरोंकी इस प्रवृत्तिके स्पष्ट चिन्ह पाये जाते हैं।' (पृ० १२०-१२१ )
देवद्धिंगणिके पश्चात्की स्थिति वर्तमान जैन आगोके सम्बन्धमें विचार करते समय देवर्द्धि गणिके पश्चात्कालीन स्थितिको भी दृष्टिमें रखना आवश्यक है । प्रायः विद्वानोंका मत है कि देवद्धि गणिके पश्चात् भी आगमोंमें परिवर्तन हुआ और उसके प्रमाण पाये जाते है । डा० जेकोबीका मत पहले दे आये हैं। उससे पहले कल्पसूत्रकी प्रस्तावनामें उन्होंने इस सम्बन्धमें जो मत व्यक्त किया था उसे यहाँ दिया जाता है____ 'प्राचीन मान्यताके अनुसार जैनसूत्रोंका पुस्तकाधिरोहण वीर नि० सं०६८० में देवद्धिगणि क्षमा श्रमण ने किया। x x जिन प्रभ मुनि और पद्म सुन्दर गणि लिखते हैं कि जब देवर्द्धिगणि ने ४५ आगमों को विनाशोन्मुख देखा तब उन्होंने
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