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________________ श्रुतावतार ४६७ मगधमें मौर्य साम्राज्यके पतन और शुंगवंशी पुष्यमित्रके उदयके पश्चात् जैन धर्मका वहां से स्थानान्तर होना स्वाभाविक था। मगधसे हटनेके पश्चात् जैनधर्मका केन्द्र मथुरा बना । कुशानवंशी राजाओंके समयमें वहां जैनधर्मका अच्छा स्थान था। वीर निर्वाण सम्वत् ८२७ और ८४० के मध्यमें मथुगमें एक वाचना होनेका उल्लेख मिलता है। इसके प्रमुख स्कन्दिल सूरि थे। ज्ञात होता है कि स्कन्दिल सूरिके पश्चात् मथुरासे भो जैन संस्कृतिका प्राधान्य उठ गया। इसीसे तीसरी वाचना सुदूर वलभी नगरीमें की गई। ___यह वाचना पाटलीपुत्री वाचनासे आठ सौ वर्षोंके पश्चात् देवर्द्धि गणिकी प्रमुखतामें हुई थी। उस समय भी बारह वर्षका भयंकर दुर्भित पड़ा था, जिससे बहुत सा श्रुत नष्ट तथा विच्छिन्न हो गया था। इस वाचनाको सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि पहलेकी वाचनाओंकी तरह इसमें केवल वाचना नहीं हुई, किन्तु उसके द्वारा संकलित और व्यवस्थित सिद्धान्तोंको पुस्तकारूढ़ करके उन्हें स्थायित्व प्रदान किया गया और इस तरह एक हजार देखो-धर्मघोष कृत ऋषिमण्डल प्रकरण पर पद्म मुन्दिर रचित वृत्त में, शुभशील कृत भरतेश्वर बाहुबलिकी वृत्ति में, हरिभद्र कृत उपदेशपदकी मुनिचन्द्र सूरि रचित वृत्तिमें स्थूलभद्र कथा तथा जयानन्द सूरिकृत स्थूल भद्र चरित्र तथा प्रावश्यक कथा। १–'वारस संवच्छरिए महते दुभिक्खे काले भत्तहा अण्णएएतो हिंडियाणं गहण-गुणण गुप्पेहाभावात्रों विप्पणढे सुत्ते, पुणो सुब्भिक्खे काले जाए महुराए महंते साधुसमुदए खंदिलायरियप्पमुःसंघेण जो अं संभरइत्ति इव संघडियं कालियसुयं । जम्हा एव महुराए कयं तम्हा माहुरी वायणा झण्णइ ।' -जिनदासमहत्तर कृत नन्दि चूणि । ३२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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