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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण
जातियां या कबीले
इस काल में ऋग्वेद में निर्दिष्ट विभिन्न जातियोंमें बहुत परिवर्तन दृष्टिगोचर होता है । बहुत सी प्राचीन जातियां या तो लुप्त होगई हैं, या अन्य जातियों में मिल गई हैं अथवा अपना प्राधान्य खो बैठी हैं और अनेक नवीन जातियां प्रकाशमें आती हैं। पंजाब की पांच प्रधान जातियां– पुरु, अनु, द्रुह्यु, यदु और तुर्वश पीछे चली गई हैं । जैसा कि पहले लिखा है -- पुरु भरतों के साथ कुरुओं में मिल गये हैं और अपने इन मित्रोंके साथ-साथ पाञ्चाल लोग इस काल के सर्व प्रधान व्यक्ति हैं । भरत एक जाति के रूप में तो लुप्त हो जाते हैं किन्तु उनके राजाओं की ख्याति जीवित है । भरत दौष्यन्ती और सातराजीतका निर्देश अश्वमेधके कर्ता प्रसिद्ध राजाओं के रूप में आता है । तथा उन्हें काशी और सात्वन्तोंका विजेता और गंगा तथा यमुनाके तटपर अश्वमेध यज्ञ करनेवाला बतलाया है ।
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पञ्चालों, वशों और उशीनरोंके साथ-साथ कुरु लोगोंने मध्य देशपर अधिकार कर लिया था । ऋग्वेद में कुरु श्रवण नामके एक राजाका तो निर्देश है, किन्तु कुरु जातिका निर्देश नहीं है । अथर्ववेद (२०-१२७-७ ) में कुरुराज परीक्षितका वर्णन है । मोटे तौर पर आधुनिक थानेश्वर, दिल्ली और गंगा-दोआबा के ऊपरले भाग कुरु राज्य में थे ।
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पञ्चालोंका निर्देश कुरुयोंके साथ कुरु पञ्चाल रूपसे आता है । ऋग्वेद में पञ्चाल नाम नहीं आता । किन्तु शतपथ ब्राह्मण में लिखा है कि पञ्चालोंका पुराना नाम क्रिवि था जो ऋग्वेद में आता है । कुरुओंसे पृथक अकेले पञ्चालोंके विषय में बहुत ही कम वर्णन मिलता है । उपनिषदोंमें प्रवाहण जैबलि नामक एक पञ्चाल राजा का निर्देश है जो दार्शनिक था ।
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