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________________ संघ भेद ४८७ तब उससे कहा गया कि यदि जिनवरका वचन होनेसे तुम जिनकल्पको अंगीकार करते हो तो यह भी अंगीकार करो कि जम्बू स्वामीके पश्चात् जिनकल्पका विच्छेद हो गया क्योंकि जिनवरने ऐसा कहा है ? ___श्वेताम्बरीय आगमोके विद्वान पं० बेचरदास जीने जिनकल्पके विच्छेदकी उक्त घोषणाके विषयमें लिखा था-यह बात मैं विचारक पाठकोंसे पूछता हूँ कि जम्बू स्वामीके बाद कौन सा २५वां तीर्थङ्कर हुआ कि जिसका वचन रूप यह उल्लेख माना जाये ? इस उल्लेखका एक ही उद्देश्य हो सकता है-जम्बू स्वामी के बाद जिनकल्पका लोप बतलाकर जिनकल्पके आचरणको बन्द कराना और जो उस ओर प्रवर्तित हों, उन्हें उस प्रकारका आचरण करनेसे रोकना। पं० वेचरदास जीके मतानुसार इसीमें श्वेताम्बरत्व और दिगम्बरत्वके विषवृक्षकी जड़ समाई हुई है, तथा इसके वीजारोपणका समय भी वही है जो जम्बू स्वामीके निर्वाणका समय है ( जै० सा० वि०, पृ० १०२-१०५ ) । जिनकल्पका विच्छेदवाला उल्लेख कबका है और किसने इसे रचा है इसका निर्णय करना तो शक्य नहीं है फिर भी इसे देवर्द्धिगणिके समयका. माना जा सकता है। यह भी संभव है कि इस प्रकारका आशय पहलेसे चला आता हो और इसीसे सूत्र ग्रन्थोंमें भी इसे देवणि गणिने समाविष्ट कर दिया हो. ऐसा । पं० वेचरदास जीका कथन है। जो कुछ हो, पर उक्त बातोंसे यह स्पष्ट है कि जम्बू स्वामीके बादसे ही सुखशील शिथिलाचारी पक्षने अंगड़ाई लेना शुरू कर दिया था और भद्रबाहुके समयमें बारह वर्षके भयंकर दुर्भिक्षके थपेड़ोंने तथा श्रुतकेवली भद्रबाहुकी दक्षिण यात्राने उसे उठकर बैठनेका अवसर दिया। तथा बौद्ध साधुओंके Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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