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________________ ४८० जै० सा० इ०-पूर्व पाठिका है ? इसका उत्तर हमें हाथी गुफाके शिलालेखसे मिलता है। जिन भगवानका अनुयायी खारवेल अशोक-दशरथके कालके पश्चात् ही अपने राज्यके आठवें वर्षमें गोरथगिरि पर गया था। और एक धार्मिक जैनके रूपमें उसने गोशालकके अनुयायी आजीविकोंका नाम वहाँसे मिटानेका प्रयत्न किया था। ___ डा. राधाकुमुद मुकर्जी ने उक्त घटनाके सम्बन्धमें शास्त्रीके उक्त मतका समर्थन करते हुए लिखा है-'डा बनर्जी शास्त्रीने एक अधिक निर्णयात्मक कल्पना सामने रखी है। उन्होंने उक्त कृत्य जैन राजा खारवेलका बतलाया है क्योंकि उसके सम्प्रदायका आजीविकोंके साथ परम्परागत विरोध था। और इस तरह उक्त घटना मंखरिके समयसे, जब कि अशोककालीन ब्राह्मी लिपि प्रायः भुला दी गई थी, बहुत पहले घटित प्रमाणित होती है।' (अशोक, पृ० २०६) पुरातत्त्वके क्षेत्रमें घटित उक्त घटनासे भी आजीविकोंके प्रति जैनोंके विरोधी दृष्टिकोणका ही समर्थन होता है। अतः आजीविकों और दिगम्बर जैनोंके ऐक्यकी कल्पना या आजीविक सम्प्रदायसे दिगम्बर जैनोंकी उत्पत्तिकी कल्पनामें कोई तथ्य प्रतीत नहीं होता। अतः महावीरकी नग्नता विषयक मान्यतामें गोशालकका प्रभाव परिलक्षित नहीं होता। नग्नता प्राचीन परम्परासे सम्बद्ध है प्रकृत विषय 'नग्नता' पर यदि इतिहास और पुरातत्त्वकी दृष्टि से विचार किया जाये तो भी निर्वस्त्रताका ही समर्थन होता है। आज हिन्दू देवी देवताओंकी नग्न मूर्तियाँ नहीं बनाई जाती और नंगे देवताओंको घृणाकी दृष्टिसे देखा जाता है, यद्यपि शिव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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