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.. संघ भेद थीं। मध्यकालमें उनका नाम गोरथगिरि भी था, यह बात श्री जैक्सनके द्वारा खोज निकाले गये दो लेखोंसे प्रमाणित हुई है। कलिंग चक्रवर्ती खारवेलके हाथी गुफावाले शिलालेखका पुनः अध्ययन करनेसे यह नाम प्रकाशमं आया है। उस शिलालेखमें लिखा है कि अपने राज्यके आठवें वर्षमें खारवेलने एक बड़ी सेनाके द्वारा गोरथगिरि पर आक्रमण किया। सात गुफाओं मेंसे बारबर पहाड़ीकी दो और नागार्जुन पहाड़ीकी तीन गुफाएँ अशोक तथा उसके उत्तराधिकारी दशरथके द्वारा आजीविकोंके लिये प्रदान की गई थीं। यह बात गुफाओंमें अंकित शिलालेखमें निबद्ध है। किन्तु तीन शिलालेखोंमेंसे 'आजीविक' शब्दको छेनीसे काटकर मिटा दिया गया है, जबकि अन्य किसी शब्दको छुआ नहीं गया है। यह किसने किया-बौद्धोंने जैनोंने या ब्राह्मणोंने। ___Hultzsch का मत है कि मौखरि अवन्तिवर्माने यह कार्य किया। किन्तु बनर्जीका कहना है कि यह मत ठीक नहीं है क्योंकि प्रथम तो ६-७ वीं शतीका अवन्तिवर्मा ईस्वी पूर्व तीसरी शतीकी अशोक ब्राह्मी लिपिसे परिचित था, इसके लिये कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। दूसरे, उस समय आजीविक विष्णु
और कृष्णके भक्त माने जाते थे। अतः हिन्दू आजीविकोंसे क्यों घृणा करेंगे? यदि उन्हें ऐसा करना ही था तो अशोकका नाम 'देवानांप्रिय' भी मिटाना चाहिये था। अतः हिन्दुओंका यह कार्य नहीं है। बौद्ध लोग अपने ही एक धर्मप्रेमी राजाकी कृतिको बिगाड़नेकी चेष्टा करें ऐसी आशा नहीं करनी चाहिये।
शेष रहते हैं जैन । जैनों और आजीविकोंका पारस्परिक विद्वेष इस निश्चयकी ओर ले जाता है कि यह काम जैनोंका है। निर्णय करनेके लिये केवल एक ही बात रहती है कि यह कार्य किसी भटकते हुए जैनका है अथवा किसी ऐतिहासिक व्यक्तिका
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