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पुस्तिका के रूप में मुद्रित कर दी गई थी। प्रस्तुत 'पूर्व पीटिका' उसी के अनुसार लिखी गई है । उस समय सबकी सम्मति से 'पूर्वपीठिका' के लेखन का भार श्रीमान् पं० कैलाशचन्द्र जी शास्त्री को सौंपा गया था । हमें यहाँ यह लिखते हुए परम हर्ष होता है कि पण्डित जी ने प्रस्तावित रूपरेखा में निर्दिष्ट बातों को ध्यान में रख कर यह कार्य बड़ी योग्यता पूर्वक सम्पन्न किया है। पण्डित जी की लेखनी मजी हुई है। तथ्यों का संकलन भी वे बड़ी योग्यता और तटस्थ भाव से करते हैं जो किसी भी इतिहासान्वेषी का सबसे बड़ा गुण माना गया है । उनकी इस सेवा के लिए श्री ग० वणा जैन ग्रन्थमाला समिति उनकी ऋणी है। ज्ञात हुया है कि पण्डित जी ने करणानुयोग और द्रव्यानुयोग ( दर्शन भाग को छोड़ कर ) का इतिहास भी लिख लिया है। मैं चाहता हूँ कि वे ही अपने नेतृत्व में ग्रन्थमाला के साधनों को देखते हुए शेष कार्य को भी शीघ्रातिशीघ्र पूरा करा दें ताकि वह प्रकाशन के लिए दिया जा सके। __इसका प्राक्कथन डा. वासुदेवशरण जी अग्रवाल ने लिखा है। इसके लिए ग्रन्थमाला समिति की ओर से उनके प्रति अाभार प्रदर्शित करना में अपना कर्तव्य समझता हूँ। आशा है कि भविष्य में भी इस महान् कार्य में उनका मार्गदर्शन प्राप्त होता रहेगा ।
अब तक इस कार्य में आर्थिक या दूसरे प्रकार से अन्य जिन महानुभावों ने योगदान किया है, इस अवसर पर मैं उन सबका भी
आभार मान लेना अपना कर्तव्य समझता हूँ। यह कार्य बहुत बड़ा है। इसमें आर्थिक और बौद्धिक सभी प्रकार का सहयोग अपेक्षित है। मुझे विश्वास है कि मविष्य में भी श्री ग० व० ग्रन्थमाला को उनका सहयोग मिलता रहेगा।
जिस पुण्यात्मा के संस्मरण स्वरूप ग्रन्थमाला की स्थापना हुई
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