________________
प्रकाशकीय
यह परम सन्तोषकी बात है कि लगभग दश वर्षके अनवरत प्रयत्न के बाद 'जैन साहित्य का इतिहास की पूर्व पीठिका' मुद्रित हो कर तैयार है । आशा है कि वह शीघ्र ही पाठकों के अध्ययन के लिए सुलभ हो जायगी।
पूर्वपीठिका श्री पं० कैलाशचन्द्र जी शास्त्री प्रधानाचार्य श्री स्या. म० वि० काशी ने परिश्रम पूर्वक लिखी है। उन्हें इसके लिए जो भी श्रम करना पड़ा है उसका निर्देश उन्होंने अपने वक्तव्य में स्वयं ही किया है। ___ स्थापना काल से लेकर अद्यावधि श्री ग० वर्णी जैन ग्रन्थमाला का संचालन श्री पं० फूलचन्द्रजी शास्त्री की देख रेख में होता पा रहा है । आर्थिक और दूसरे प्रकार की सब अनुकूलताओं की श्रोर भी उन्हीं को ध्यान देना पड़ता है।
नवम्बर सन् १९५३ की १३ तारीख को ग्रन्थमाला की बैठक आमन्त्रित की गई थी। उस बैठक में ग्रन्थमाला समिति ने मेरे प्रस्ताव और पं० फूलचन्द्र जी के समर्थन करने पर 'जैन साहित्यका इतिहास' के निर्माण करने की स्वीकृति दी थी।
पूर्व पीठिका का लेखन कार्य प्रारम्भ होने के पूर्व श्री पं० कैलाशचन्द्रजी शास्त्री, स्व. श्री पं० महेन्द्रकुमार जी न्यायाचार्य और श्री पं० फूलचन्द्र जी शास्त्री ने मिल कर 'जैन साहित्यका इतिहास' की 'प्रस्तावित रूपरेखा' तैयार की थी, जो सन् १९५४ में ही एक
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org