________________
संघ भेद
४६५ यहाँ चार आरोप आजीविकों पर लगाये हैं- शीत जलका व्यवहार, बीज भक्षण, उदिष्ट भोजन और बीमार रोगीके लिये गृहस्थके पात्रमें आहार लाकर उसे खिलाना ।
गोशालक आर्द्रक संवादमें, जिसका पीछे उल्लेख किया है, गोशालक कहता है कि शीतोदक बीज काय, उदिष्ट भोजन तथा स्त्री सेवन करनेसे हमारे साधुको पाप नहीं लगता । यहाँ गोशालकने उक्त चार बातोंमें से तीन कहीं है, पात्र भोजन नहीं लिया है, उसके स्थान पर स्त्री सेवन रखा है।।
इसका मतलब यह है कि आजीविक साधु उक्त ४ चीजोंका सेवन करने में दोष नहीं मानते थे। और चुंकि इसकी उत्थानिकामें शीलांकने दिगम्बरोंको भी सम्मिलित कर लिया है, अतः शीलाङ्क के अनुसार दिगन्बरोंमें भी शीतल जल वगैरहके व्यवहारमें दोष नहीं माना जाता था। संभवतः इसी से डा. हार्नलेने दोनोंको एक मान लिया जान पड़ता है। ___ डा० हानले साहब का कहना है कि 'वास्तवमें दिगम्बर और श्वेताम्बरोंमें भी उक्त चार बातोंको लेकर ही मत भेद है । शीतल जल और बीजके भक्षण पर रोक किसी भी प्रकारके जीवकी सुरक्षाके लिए है। किन्तु कहा जाता है कि दिगम्बर केवल पशुपक्षी वगैरहकी सुरक्षाकी ओर ही ध्यान देते हैं जब कि श्वेताम्बर जीव मात्रकी सुरक्षाके पक्षपाती हैं। ब्रह्मचर्यके दोनों पक्षपाती हैं किन्तु श्वेताम्बर भिक्षा पात्र रखते हैं, दिगम्बर नहीं रखते । नग्नताको लेकर विरोध तो दोनोंके नामोंसे ही स्पष्ट है । (इं० इ० रि०, जि० १, पृ० २६७ )
दिगम्बर मुनि आजीविकोंकी तरह शीतल जल और बीज कायका सेवन करते हैं तथा वे केवल पक्षी पशु आदि स्थूल जीवों
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org