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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण वैदिक देवताओंका मुख्य लक्षण बल सामर्थ्य और शक्ति था, वे मुख्यतः शक्ति और मज़बूतीको देनेवाले थे। पुण्य और भलाईका विचार उनमें नहीं था। धर्मभीरुता और भक्तिकी प्रेरणा उनसे नहीं मिलती थी। आर्य उपासक अपने देवत ओंसे सभी इसी लोककी वस्तुएं माँगता था। देवपूजा और पितृपूजा वैदिकधर्मके मुख्य अंश थे और वह पूजा यज्ञमें आहुति देनेसे होती थी। यज्ञमें आहुति या बलि देनेसे देवताओंकी तृप्ति होती थी। वैदिककालमें आर्योंके धर्मका मुख्य चिन्ह यज्ञ ही थे । वे यज्ञ पुरोहितोंके द्वारा होते थे। यज्ञोंके विकासके साथ साथ पुरोहितोंकी एक श्रेणी बनती गई। और यज्ञोंका आडम्बर बढ़ जानेपर उनका करना धनाढ्योंके लिए ही शक्य होगया।
दार्शनिक मन्तव्य ऋग्वेदके दसवें मण्डल में जो अपेक्षाकृत अर्वाचीन है हिन्दू दर्शनके प्रारम्भिक रूपका आभास मिलता है। उसमें बहुदेवता वादके विषयमें शङ्का की गई है और विश्वकी एकता स्वीकार की गई है। सृष्टि विषयक विचार करते हुए सृष्टिको विश्वकर्मा अथवा हिरण्यगर्भकी उपज बताया है। __पुरुष सूक्तमें एक प्राथमिक दैत्यके बलिदानसे, जिसका नाम पुरुष था. सृष्टिका निर्माण हुआ। सांख्यदर्शनमें यह पुरुष नाम
आत्माके लिए व्यवहृत हुआ। विद्वानोंके मतानुसार ये विचार ही हिन्दू दर्शनके जनक हुए. ( कै० हि०, जि . १, पृ० १०७ )।
ऋग्वेदमें मरणोत्तर जीवन सम्बन्धी विचार नगण्यसा ही है। मुर्दोको या तो जलाया जाता था या दफनाया जाता था। यदि जलाया जाता था तो अस्थियोंको पृथ्वीमें गाड़ दिया जाता था। इससे सूचित होता है कि दफनानेकी पद्धति प्राचीन थी
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